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युगवीर-निबन्धावली कर रक्खा था-वेतन आते ही आटा, दाल,घी, तेल, नमक, मिरच, मसाला, कपडा लत्ता, जेवर और रिज़र्व फड वगैरह सब विभागोमें वह उसका बटवारा कर देता था। अब बेतनके बढ जानेपर एकदम पचास रुपयेको बचत होने लगी और स्वच प्राय ज्योका त्यो रहा, इससे उसे आनद ही आनद मालूम होने लगा। परन्तु छह सौ रुपये वाले भाईकी हालत दूसरी थी-उसकी ज़रूरियात पचास रुपये या सौ दोसौ रुपयेकी नही थी बल्कि छह सौ रुपये मासिकसे भी वढी हुई थी। उसने अपनी जाहिरी हैसियत अथवा स्थितिको छह सौ रुपये से भी अधिककी बना रक्खा था-नौकर चाकर, घोडा गाडी, बाग बगीचे, फूल फुलवाडी, कमरेकी शोभा सजावट वगैरह सब तरहका साज़ सामान था, रोजाना हजामत बनती थी, तीसरे दिन पोशाक बदली जाती थी, हर साल घरभरके लिये अच्छे नये नये कपडे सिलते थे और दो चार बार पहनकर ही रद्दी कर दिये जाते थे, मेहमानोकी सेवा-शुश्रूषा भी खूब दिल खोलकर होती थी, घरमे मेवा, मिठाई, फल, फूल और नाना प्रकारके भोजनोकी हरदम रेल पेल अथवा चहल पहल रहती थी, स्त्रियाँ देवागनामो जैसे वस्त्राभूषणोसे भूषित नजर आती थी, उनके जेवरोकी कोई सख्या अथवा सीमा न थी, और बच्चे मखमल, कीमख्वाब, प्रतलस तथा रेशमसे घिरे हए और जरी तथा सलमासितारेके कामोंसे जडे हुए मालूम होते थे, नाटक थियेटरका भी शौक चलता था, प्राय दो चार मित्रोको साथ लेकर और उनका भी खर्च स्वय उठाकर ही वह उन तमाशोको देखने जाया करता था, बाकी विवाह-शादीके खर्चोंका तो कोई परिमारण अथवा हिसाब ही नहीं था- उनके लिये तो अकसर कर्ज भी ले लिया जाता था और साथ ही पूर्वजोकी पैदा की हुई सम्पत्ति (जायदाद) का भी सफाया बोल दिया जाता था । अब एकदम दोसौ रुपये मासिककी आमदनी कम हो जानेसे उसको फिक्र पड़ी और चिन्ताने आधेरा । वह सोचने लगा कि 'किसी नौकरको हटा दूं, गाडी टमटम