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युगवीर नबन्धावली सुकुमालचारित्रादिक शास्त्रोमें मौजूद है । यही चाडालीका जीव दो जन्म लेनेके पश्चात् तीसरे जन्ममें 'सुकुमाल' हुआ था।
'पूर्णभद्र' और 'मानभद्र' नामके दो वैश्य भाइयोने एक चाडाल को श्रावकके व्रत ग्रहण कराए थे और उन व्रतोंके कारण वह चाडाल मर कर सोलहवे स्वर्गमे बड़ी ऋद्धिका धारक देव हुआ था, जिसकी कथा पुण्यास्रव-कथाकोशमें पाई जाती है ।
'हरिवशपुराण' में लिखा है कि, गधमादन पर्वत पर एक 'परवर्तक' नाम के भीलको श्रीधर आदि दो चार-मुनियोने श्रावकके व्रत दिये । इसी प्रकार म्लेच्छोके जैनधर्म धारण करनेके सम्बन्धमे भी बहुतसी कथाएँ विद्यमान है, बल्कि जैनी चक्रवर्ती राजामोने तो म्लेच्छोकी कन्यामोसे विवाह तक किया है। ऐसे विवाहोसे उत्पन्न हुई सन्तान मुनि-दीक्षा ले सकती थी, इतना ही नही किन्तु म्लेच्छ देशोसे आए हुए म्लेच्छ तक भी मुनिदीक्षाके अधिकारी ठहराये गये हैं।
श्रीनेमिनाथके चचा वसुदेवने भी एक म्लेच्छ राजाकी पुत्रीसे, जिसका नाम 'जरा' था, विवाह किया था, और उससे 'जरत्कुमार' उत्पन्न हआ था, जो जैनधर्मका बड़ा भारी श्रद्धानी था और जिसने अतको जैनधर्मकी मुनिदीक्षा धारण की थी। यह कथा भी हरिवंश
१ जैसा कि 'लब्धिसार की टीका के निम्न प्रशसे प्रकट है
म्लेच्छभूमिजमनुष्यारणा सकलसयमग्रहण कथ भवतीति नाशकितव्य । दिग्विजयकाले चक्रवर्तिना सह आर्यखण्डमागताना म्लेच्छ
राजाना चक्रवादिभि सह जातवैवाहिकसम्बन्धाना सयमप्रतिपत्तेरविरोधात् । अथवा चक्रवर्त्यादिपरिणीताना गर्भेष पन्नस्य मातृपक्षापेक्षया म्लेच्छव्यपदेशभाज सयमसभवात् तथाजातीयकाना दीक्षाहवे प्रतिषेधाभावात् । (गाथा न० १६३ से सम्बद्ध )