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हम दुखी क्यो हैं ?
२८१ अपनी भूल एक तोता नलिनी पर आकर बैठता है और उसकी नलीके घूम जाने से उलटा होकर उसे पकडे हए लटका रहता है,उड़नेकी खुली शक्ति होते हुए भी नही उडता, इसका क्या कारण है ? इसका कारण यही है कि वह उस वक्त अपनी आकाश-गतिको भूल जाता है उडनेकी शक्तिका उसे ध्यान नही रहता और यह समझने लगता है कि मुझे इस नली ने पकड रक्खा है । यद्यपि उस नलीने उसे जरा भी नहीं पकड़ा. उसने खुद ही अपने पजोसे उसे दबा रक्खा है, वह चाहे तो अपने पजोंको खोलकर उस नलीको छोड़ सकता है और खुशीके साथ आकाशमे उड सकता है। परन्तु अपनी भूल और नासमझीकी वजहसे वह वैसा न करके उलटा लटका रहता है और फिर शिकारीके हाथमे पडकर तरह तरहके दुख तथा कष्ट उठाता है। ठीक ऐसी ही हालत हमारी है, हम अपने प्रात्माके स्वरूप और उसके सुखस्वभावको भूले हुए हैं और यह गलत समझे हुए हैं कि इन परिग्रहो अथवा ज़रूरियातने, जिनको हमने ही बढाया और हमने ही अपने पीछे लगाया है, हमारा पिड पकड रक्खा है और वे अब हमको छोडते नहीं हैं । इसीसे उस तोतेकी तरह हम भी नाना प्रकारके बन्धनोमे पडकर दुखोमे अपना प्रात्म-समर्पण कर रहे है-अपनेको दु खोकी भेट चढा रहे है। हमारी इस दशाका ध्यानमे रखते हुए ही कविवर प० दौलतरामजीने यह वाक्य कहा है -
अपनी सुधि भूल आप, श्राप दुख उपायौ।
ज्यों शुक नभ चाल विसरि, नलिनी लटकायौ । यह वाक्य हम पर बिल्कुल चरितार्थ होता है । यदि अब भी हम अपनी भूलको सुधारले और अपने सुख-दुखके साधनों तथा कारणोको ठीक तौरपर समझ जाये तो हम आज भी अपनी ज़रूरि