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हम दुखी क्यो हैं।
२६३ अथवा स्थायी कमी ला सकेंगे। जहरियातको पूरा करके दुखोकी शान्तिकी प्राशा रखना प्राय ऐसा ही है जैसा कि अग्नि पर ईंधन और तेल डालकर उसकी शाति चाहना । यह जरियातकी पूर्ति ऐसी मर्हमपट्टी है जो उस वक्त तो घावमें जरासी देरके लिये कुछ चैन डाल देती है परन्तु पीछेसे बिया जाती है और तरह तरहकी वेदनामों तथा कष्टोकी जन्मदाता बन जाती है । अत' दुखोंको यदि वास्तवमें दूर करना और सुख-शाति चाहना है तो इस खपालके घोलेमें न रहकर हमें सबसे पहले, जितना भी शीघ्र बन सके, इन फिजूलकी जरूरियातको अलग कर देना चाहिये । यही हमारे हित का साधन और हमारे परलोकके सुधरनेका एक खास मार्ग है। इसीसे हमको वास्तविक सुख-शान्तिकी प्राप्ति हो सकेगी।
आशा है, सुखके सच्चे अभिलाषी और मुतलाशी (खोजी) अपनी उस वेदना और तृष्णारूपी अग्निको, जो बाहा पदार्थात लिये उनके हृदयमें जल रही है, ज्ञान तथा विवेकरूपी जलसे शांत करेंगे, सतोषको अपनाएंगे, सादा जीवन व्यतीत करना सीखेंगे और यह सममकर कि इन फ़िजूलकी जरूरियासने ही हमारी जान अजाबमें डाल रक्खी है, हमारी मिट्टी खराब कर रक्खी है,,ये ही हमारे दुखोकी खास कारण है और ये ही हमारी उन्नति तथा प्रतिमें रोडा अटकानेवाली अथवा विघ्नस्वरूप हैं, इन्हे मन-वचन-कायसे दृढताके साथ दूर करने-करानेकी पूरी कोशिश करेगे । और इसके लिये उन्हें यदि किसी रीति-रिवाजको तोडना या बदलना भी पड़े, तो खुशीसे पूर्ण मनोबलके साथ खुद ही उसके लिये आगे कदम बढ़ाएंगे- अगुना बनेगे-और इस तरह अपना एक उदाहरण या नमूना दूसरोके सामने रखकर उनका मार्ग साफ करेंगे और उन्हें भी वैसा करने करानेकी हिम्मत तथा साहस प्रदान करेगे । देश और जातिके सुधारका भी इसी पर एक प्राधार है और इसीके सहारे पर सबका बेड़ा पार है।