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जैनी कौन हो सकता है?
जो जीव जैनधमको धारणकरता है वह 'जनी' कहलाता है। परन्तु आजकलके जैनी जैनधर्मको केवल अपनी ही पैतृक संपत्ति ( मौरूसी तरका ) समझ बैठे हैं और यही कारण है कि वे जैनधर्म दूसरोको नहीं बतलाते और न किसीको जेनी बनाते हैं । शायद उन्हें इस बातका मय हो कि कही दूसरे लोगोंके शामिल होजानेसे इस मौरूसी तरकेमें अधिक भागानुभाग होकर हमारे हिस्सेमें बहुत ही थोडासा जैनधर्म बाकी न रह जाय । परन्तु यह सब उनकी बड़ी भारी भूल तथा गलती है और प्राज इसी भूल तथा गलतीको सुधार रनेका यत्न किया जाता है।
हमारे जैनी भाई इस बातको जानते हैं और शास्त्रोंमें भी जगह जगह हमारे परमपूज्य आचार्योका यही उपदेश है कि, संसारमें दो प्रकारकी वस्तुएँ है—एक चेतन और दूसरी अचेतन। चेतनको जीव और अचेतनको अजीव कहते हैं। जितने जीव हैं वे सब द्रव्यत्वकी अपेक्षा अथवा द्रव्यदृष्टिसे बराबर हैं- किसीमें कुछ मेद नही है-सबका असली स्वभाव और गुण एक ही है । परन्तु अनादिकालसे जीवोंके साथ कर्म-मल लगा हुआ है, जिसके कारण उनका असली स्वभाव पाच्छादित है, और वे नाना प्रकारको पर्याय धारमा करते हुए नजर आते हैं। कीड़ा, मकोड़ा, कुता, बिल्ली, शेर,