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हम दुखी गयो हैं.
२८६ . व्याकी टीपटाक, मुमाबत अथवा लोक-विसायको पसन्द नहीं करने थे और अपनी शक्तिको व्यर्थ खोला .सन्हें अब मान होता था। इसीसे फिकात उन्हें नहीं सताते थे, प्रम-विकार या मना अधिकार जमाने नही पाते थे, और वे खूब हृष्ट-पुष्ट, नीरोग, तन्दुन रुस्त, बलवान, बहादुर, पराक्रमी, निर्भयप्रकृति, प्रसन्नविता हसमुख, उदारविचार, वचनके सच्चे, प्रणके पक्के, धर्मपर स्थिर, भोर अपने कर्तव्यका पालन करनेमे बहत कुछ सावधान तथा कटिबद्ध होते थे। उनके समयमें यदि कोई किसीसे कर्ज लेता था तो उसके लिए प्रामतौरपर किसी रुक्के. चिट्टी, प्रामेसरी नोट तमस्सुक या रजिस्टरीकी कोई जरूरत नहीं होती थी, एक अनपढ अथवा प्रशिक्षित व्यक्षिका महज कलमको छू देना या उससे कोई तिरछी बाँकी लकीरसी खीच देना भी रजिस्टरीसे ज्यादा असर रखता था; उस वकके कोने तमादी पारिज नहीं होती थी-कालकी कोई मर्यादा उन्हें प्रदेय नहीं ठहराती थी-किसीका लेकर नही भी दिया करते यह बात सिखलाई ही नही जाती थी। यदि किसीको कर्जा देते अबका अपना ऋण चुकाते नही बनता था या उसके भुगतानमे देर हो जाती थी
और इसपर साहूकार उससे यह कहता था कि भाई ! तुमसे कर्जा देते अथवा ऋण चुकाते नही बनता है, प्रत मैं हिसाब-बहीमे तुम्हारे नामको छेक हूँ, बिदिया हूँ और अपनी रकमको बट्टेखाने डालटू" तो इसको सुनकर वह कर्जदार ( ऋणी पुरुष ) कॉप जाता था और हाथ जोड़कर कहने लगता था कि 'नहीं, ऐसा कभी मत करना, जब तक मेरे दम दम मौर बदनमें बान-आण बाकी हैं। मैंने जिन ऑखो पापका कर्जा लिया है उन्ही अखिो उसे भुगताकपा कौड़ी कौड़ी प्रश करूंगा, देर जरूर है मगर अन्धेर नही, और यदि अपने जीवन में किसी तरहपर मैं प्रदान कर सका तो मेरे बेटेकपोते. पड़पोते, यहाँ तक कि मेनी सात पीढी उसको अदा करेगी, आप उसको चिन्ता न करें। जब मापसे लिया गया है तब यह मापको हिला