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हम दुखी क्यों है ?
२७१ और दूसरा पचास रुपये मासिक । पचास रुपये पानेवाले भाईकी तरक्की (वृद्धि ) होकर सौ रुपये मासिक हो गये और छह सौ रुपये मासिक पानेवाले भाईकी तनज्जुली ( पदच्युति ) ने एकदम दो सौ रुपयेकी रक्म कम कर दी, और उनकी तनख्वाह सिर्फ चार सौ रुपये मासिक रह गई। पचास रुपये पानेवाला भाई अपनी उन्नति तथा पदवृद्धिके समाचार पाकर खुश हो रहा है, आनद मना रहा है, अगमे फूला नहीं समाता और इष्टमित्रोमे मिठाइया बाँटता है। प्रत्युत इसके, छह सौ रुपये माहवारका तनख्वाहदार ( वेतनभोगी ) अपनी अवनति अथवा पदच्युतिकी खबर पाकर रो रहा है, झीक रहा है, दुखितचित्त और शोकातुर हुमा सोच रहा है कि 'मुझसे कौनसी खता अथवा चूक हई ? क्या अपराध बन गया? मैंने कौनसा बिगाड किया, जिससे मेरा दर्जा घटा दिया गया? किसने मेरी चुगली की ? किसने आफीसर (हाकिम) के सामने मेरी झूठी-सच्ची बाते जाहिर की ? हाय ! मेरी तकदीर फूट गई । भाग्य उलट गया । । अब क्या करूँ, कहाँ जाऊँ और कैसे करूँ।। बडा
दुख है ||
___इन दोनो भाइयोके अन्त करणकी हालतको यदि ठीक तौरसे देखा जा सके, तो इसमे सदेह नहीं कि बड़ी तनख्वाहवाला दुखी
और छोटी तनख्वाहवाला सुखी मिलेगा। परतु यह क्यो ? रुपयेकी कमी-बेशी ही यदि सुख दुखका कारण हो, तो बडी तनख्वाहवाले को, जिसकी तनख्वाह घट जानेपर भी दूसरे तरक्की पानेवाले भाईसे चौगुनी रहती है, ज्यादा सुखी होना चाहिये-उसके सुखकी मात्रा दूसरेसे चौगुनी नहीं तो तिगुनी या दुगुनी तो ज़रूर होनी चाहिये । परन्तु ऐसा नहीं देखा जाता, वह दूसरेके बराबर भी अपनेको सुखी अनुभव नहीं करता। इसकी वजह है और वह यह है कि, पचास रुपये पाने वाले भाईने तो अपनी ज़रूरियातको पचास रुपयेकी बना रक्खा था-पचास रुपयेके भीतरही अपने सम्पूर्ण खर्चीको परिमित