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युगवीर-निबन्धानली सयुक्त बलके द्वारा उसे भँवरसे निकाल कर पार लगाना चाहिए।
और इमलिये प्रत्येक भारतवासीका इस समय यह मुख्य कर्तव्य है कि वह देशकी वर्तमान परिस्थितिको समझकर उसमे देशको उबारने
और ऊँचा उठानेका जी-जानसे यत्न करे। उसे अपने क्षणिक सुखोपर लात मारकर भारतमाताकी सेवामे लग जाना चाहिए और माताको पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करानेके लिए उस महामत्रका आराधन करना चाहिए जिसे महात्मा गाधीजीने अपने दिव्य-ज्ञानके द्वारा मालूम करके एक अमोघ शस्त्रक रूपमे प्रगट किया है और जिसे भारतकी जातीय महासभा (कायस) ने अपनाया ही नही बल्कि भारतके उद्धारका एकमात्र उपाय स्वीकृत किया है। और वह महामत्र है 'असहयोग'।
हम अनेक तरीको अथवा मार्गोसे सरकारको उसके शासन-कायमे जो मदद पहुंचा रहे हैं, उस मददसे हाथ खीच लेना और उसे बद कर देना ही 'असहयोग' है। और यह ऐसा गुरुमत्र है कि इस पर पूरे तौरसे अमल होते ही कोई भी अन्यायी सरकार एक दिनके लिये भी नहीं टिक सकती । प्रजाहित-विरोधी सरकारको ठीक मागपर लानेके लिये इससे अच्छा दूसरा उपाय नही हो सकता। परन्तु इस पर अमल करनेवालोको स्वयं अहिसक, अत्याचार-रहित, निष्पाप
और प्रेमकी मूर्ति बन जाना होगा, तभी उन्हे सफलता मिल सकेगी। यह नहीं हो सकता कि हम स्वय तो अन्याय, अत्याचार और पापकी मूर्ति बने रहे और दूसरोके इन दोषोंको छडानेका दावा करे । र्याद हम खुद दूसरोंपर अन्याय और अत्याचार करते हैं तो हमे इस बातकी शिकायत करनेका कोई अधिकार नहीं है कि हमारे ऊपर क्यों अन्याय और अत्याचार किये जाते हैं। यदि हमारा आत्मा स्वय पापोंसे मलिन है तो हम दूसरोंके पाप-मलको दूर करानेके पात्र नही हो सकते। इसीसे असहयोगका यह संग्राम प्रारमशुद्धिका एक यज्ञ माना गया है, जिसमे हमें अपने उन संपूर्ण दोषों, त्रुटियो और कमजोरियोकी पाहुतियां देनी होंगी जिनसे लाम उठाकर ही सरकार