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देशको वर्तमान परिस्थिति और हमारा कर्तव्य २११ रही है वह या तो एकदम बुझ जायगी और या जनता उत्तेजित होकर अशाति धारण करेगी, कुछ उपद्रव तथा उत्पात मचावेगी और तब उसे पशु-बलके द्वारा कुचल डाला जायगा। परन्तु परिणाम इन दोनोमेसे एक भी निकलता हा मालूम नहीं होता। सरकारके निष्ठुर व्यवहार और निरपराधियोकी इस पकड-धकडने उन लोगोके वज्र-हृदयको भी द्रवीभूत कर दिया है और वे भी सरकारकी इस घातक पालिसीकी निन्दा करने लगे हैं, जो अभी तक इस आन्दोलनमे शरीक नही थे और बिल्कुल ही तटस्थ रहते थे अथवा सरकारके सहायक बने हुए थे। स्वराज्यकी आग बुझने अथवा दबनेके बजाए (स्थानमे) और अधिकाधिक प्रज्वलित हो रही है और सरकारके इस दमनने उस पर मिट्टीका तेल छिडकनेका काम किया है । लोगोका उत्साह बराबर बढ़ रहा है और वे स्वराज्य-सेनामे भरती होकर खुशी खुशी हजारोकी सख्यामे झु डके झुड जेल जा रहे है और ऐसी जेलयात्राको अपना अहोभाग्य समझ रहे है, जो देशके उद्धार और उसे गुलामीसे छुडानेके उद्देश्यसे कीजाती है । यह सब कुछ होते हुए भी अशातिका कही पता नही । ला लाजपतराय, पं० मोतीलाल नेहरू, मौ० अबुलकलाम आजाद और देशबन्धु सी० आर० दास जैसे बड़ेबड़े नेताओ तथा कुछ प्रतिष्ठित महिलामोके पकडे जाने और जेल भेजे जानेपर भी लोग शात रहे। लार्ड रीडिगने, शातिके इस यज्ञके समय, तलवारसे स्वराज्य मिलना बतलाया । और इस तरह पर, प्रकारातरसे हिसाको उत्तेजना दी। परन्तु फिर भी किसीने तलवार उठाकर हिसा करना नहीं चाहा और न शातिको भग करना पसद किया। यह सब. अधिकाशमे महा मा गाधीजीके उस महान् उपवासका फल है जो उन्होने बम्बईकी अशातिके समय धारण किया था । इस उपवासने देशवासियोके हृदयमे शाति और अहिसाकी उस ज्योतिको, जो पहले कुछ दुर्बल और कम्पित अवस्थामे थी, बहुत कुछ दृढ और बलाढ्य बना दिया है । ऐसी हालतमें यदि यह कहा