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जाति-भेद पर अमितगति प्राचार्य २२६ जो कि एक धीवर-कन्याले व्यभिचार-द्वारा उत्पन्न हुए थे, लोकरें कमी इतनी पूजा और प्रतिष्ठाको प्राप्त न कर सकते। इससे साफ जाहिर है कि नीच जातिके व्यक्ति भी सद्गुणोंके प्रभावसे ऊँच जातिके हो जाते हैं । अथवा यो कहिये कि नीव जातियोमें भी अच्छे-अच्छे रश्न उत्पन्न होते हैं और हो सकते हैं । इसलिये उनकी उपेक्षा की जानी योग्य नही-उन्हे ऊँचे उठानेका यत्न करना चाहिये।
शीलवन्तो गता स्वर्गे नीचजातिभवा अपि । कुलीना नरक प्राप्ताः शील-सयम-नाशिन ॥३१॥ 'नीच जातियोमे उत्पन्न होने पर भी सदाचारी व्यक्ति स्वर्गको प्राप्त हुए हैं और ऊँच जातियोंमे जन्म लेनेवाले प्रसदाचारीशीलसयमादिसे रहित-कुलीन लोग भी नरकमें गये हैं।'
भावार्थ -ऊँच जातिवाले जब नीच गतिको और नीच जातिवाले ऊँची गतिको प्राप्त हुए है - और हो सकते हैं तब वास्तवमें इन ऊँचनीच गिनी जानेवाली जातियोका कुछ भी महत्त्व नही रहता। उच्चत्व और नीचत्वका अथवा अपने उत्कर्ष और अपकर्षका सारा खेल गुणोके ऊपर अवलम्बित है । अत सद्गुणोकी प्राप्ति करने-करानेका ही यत्ल होना चाहिये। उनकी प्राप्तिमें वस्तुत. कोई नीच कही जाने वाली जाति बाधक नही है।
गुणै सम्पद्यते जातिगुणध्वसैविपद्यते। यतस्ततो बुधै कार्यो गुणेष्वेवादर पर ||३२|| जातिमात्रमद कार्यो न नीचत्वप्रवेशक. ।
उच्चत्वदायक सद्भि कार्य शोलसमादर. ॥३३॥ 'उत्तम गुणोंसे ही उत्तम जाति बनती है और उत्तम गुणोंके नाशसे वह जाति नष्ट हो जाती है-नीचत्वको प्राप्त हो जाती है। इसलिये बुद्धिमानोको सबसे अधिक गुणोका ही आदर करना चाहिये (बाह्य जाति पर दृष्टि रखकर या उसके भुलावेमे भूलकर उसीको सब कुछ न समझ लेना चाहिये) । साथ ही, अपनी जातिका कभी