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युगवीर-निबन्धावली उनके साथ ही समाप्त हो गया था-वह उनकी सततिमे प्रचलित नहीं रहा और १८ नये गोत्रोकी सृष्टि भी हो सकी। साथ ही,यह बतलानेकी कोई जरूरत नहीं रहती कि पहले जमानेमे पिताके गोत्रको छोड़ कर नये गोत्र भी धारण किये जा सकते थे और इस नई गोत्र-कल्पनाके अनुसार अपने विवाह-क्षेत्रको विस्तीर्ण बनाया जा सकता था । यदि अग्रवालोकी इस पिछली गोत्र-कल्पनाको हटा दिया जाय तो, राजा अग्रसेनकी दृष्टिसे, सब अग्रवाल एकगोत्री है और वे परस्पर--अग्रवालोमे ही--विवाह करके सगोत्र-विवाह कर रहे हैं यह कहना चाहिये। ___ (२) खडेलवाल जातिके जैन इतिहाससे पता चलता है कि एक समय राजा खडेलगिरकी राजधानी खडेलानगर और उसके शासनाधीन ८३ ग्रामोंमें महामारीका बडा प्रकोप हुआ और वहानरमेध यज्ञ तक कर देने पर भी शात न हुआ बहुत कुछ हानि पहुँचाकर, अन्तको श्रीजिनसेनस्वामीके प्रभावसे शात हुआ । इस अतिशयको देख कर ८४ ग्रामोके राजा-प्रजा सभी जन जैनी हो गये और श्रीजिनसेनस्वामीने उनके ८४ गोत्र नियत किये । गोत्रोमे 'सहा' गोत्रको छोडकर, जो खडेलानगरके निवासियो तथा राजकुलके लिये नियत किया गया था, शेष ८३ गोत्रोका नामकरण ग्रामोके नामो पर हमा--अर्थात् एक एक ग्रामके रहनेवाले सभी जैनियोका एक एक गोत्र स्थापित किया गया । जैसे पाटनके रहनेवालोका गोत्र ‘पाटनी',अजमेरके रहनेवालोका 'अजमेरा',बाकली प्रामके निवासियोका 'बाकलीवाल' और कासली गॉवके निवासियोका गोत्र कासलीवाल नियत हुआ । इन गोत्रोमे सोनी, लुहाड्या, चौधरी
आदि कुछ गोत्रोके विषयमें विद्वानोका यह भी मत है कि वे व्यापार, पेशा या पदस्थकी दृष्टिसे रक्खे हुए नाम हैं - सोनेका व्यापार तथा काम करनेवाले 'सोनी', लोहेका व्यापार तथा काम करनेवाले 'लुहाड्या और चौधरीके पद पर प्रतिष्ठित'चौधरी' कहलाये। परन्तु कुछ