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जाति-पंचायतोका दंड-विधान और श्मशान (स्तभ) के सहारे बैठे हुए ये श्मशान-जातिके विद्याधर है ॥१६॥ वैडूर्यमणिके समान नीले नीले वस्त्रोको धारण किए पांडुरस्तभके सहारे बैठे हुए ये पाडुकजातिके विद्याधर हैं ॥१७॥ काले काले मृगचर्मोको प्रोढे, काले चमडेके वस्त्र और मालानोको धारे कालस्तभका आश्रय लेकर बैठे हुए ये कालश्वापाकी जातिके विद्याधर है ।।१८।। पीले वर्णके केशोसे भूषित, तप्तस्वर्णके भूषणोंके धारक श्वपाकविद्याओके स्तभके सहारे बैठनेवाले ये श्वपाकजातिके विद्याधर है ।।१६।। वृक्षोके पत्तोके समान हरे वस्त्रोको धारण करनेवाले, भाति भातिके मुकुट और मालाप्रोके धारक पर्वतस्तभका सहारा लेकर बैठे हुए ये पावतेयजातिके विद्याधर हैं।॥२०॥ जिनके भूषण बासके पत्तोके बने हुए हैं, जो सब ऋतुप्रोके फूलोकी मालाएं पहिने हुए हैं और वशस्तभके सहारे बैठे हुए हैं वे वशालयजातिके विद्याधर हैं ॥२१॥ महासर्पके चिन्होसे युक्त उत्तमोत्तम भूषणोको धारण करनेवाले वृक्षमूल नामक विशाल स्तभके सहारे बैठे हए ये वाक्षमूलकजातिके विद्याधर हैं ।।२२।। इस प्रकार रमणी मदनवेगाद्वारा अपने अपने वेष और चिन्ह-युक्त भूषणोसे विद्याधरोका भेद जानकर कुमार अति प्रसन्न हुए और उसके साथ अपने स्थान चले पाए, एव अन्यविद्याधर भी अपने अपने स्थान चले गए।"
इस उल्लेखपरसे इतना ही स्पष्ट मालूम नहीं होता कि मातग जातियोके चाडाल लोग भी जैन मन्दिरोमे जाते और पूजन करते थे, बल्कि यह भी मालूम होता है कि श्मशानभूमिकी हड्डियोके आभूषण पहने हए तथा मृगछाल अोढे, चमडेके वस्त्र पहिने और चमड़ेकी मालाएँ हाथमे लिये हुए भी जैनन्दिरोमे जा सकते थे।
१ यहाँ किसीको यह समझने की भूल न करना चाहिये कि लेखक आजकल ऐसी अपवित्र दशामे मन्दिरोमे जानेकी प्रवृत्ति चलाना चाहता है।