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हम दुखी क्यों हैं ?
दुखभरी हालत
इसमे कोई सन्देह नहीं और न किसीको कुछ आपत्ति है कि आज कल हमे सुख नहीं, आराम नही और चैन नही। हमारी बेचेनी, परेशानी और घबराहट दिन पर दिन बढती जाती है, तरह तरहकी चिन्तामोने हमको घेर रक्खा है, रात दिन हम इसी उधेडबुनमे रहते हैं कि किसी तरह हमको सुख मिले, हम सुखकी नीद सोएँ, हमारे दुख-दर्द दूर हो, हमारी गर्दनसे चिन्तामोका भार उतरे
और हमारी प्रात्माको शान्तिकी प्राप्ति हो । इसी सुख-शान्तिकी खोजमे-उसकी प्राप्तिके लिये- हम देशविदेशोमे मारे मारे फिरते हैं,जगल बियावानोको खाक छानते हैं, पर्वत-पहाडोसे टक्कर लेते है, नदी-नालो और समुन्द्रो तकको लाँघने या उनकी छाती पर मूग दलनेकी कोशिश करते हैं। इसके सिवाय, दिन रात तेलीके बैलकी तरह घरके धन्धोकी पूतिके पीछे ही चक्कर लगाते रहते है, उन्हीके जालमे फँसे रहते हैं, उनका कभी प्रोड (अन्त) नहीं आता, उनकी पूर्ति और भूठी मान-बडाईके लिये धनकी चिन्ता हरदम सिर पर सवार रहती है, हरवक्त यही रट लगी रहती है कि 'हाय टका । हाय टका | टका कैसे पैदा हो | क्या करे कहाँ जाँय और कैसे करे ! किसी भी तरह क्यो न हो, टका पैदा होना चाहिये, तभी काम