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सवर्ण र अन्तर्जातीय विवाह
करालब्रह्मदत्तेन मुनिना दिव्यचक्षुषा । वेदे जेतु समादिष्टा महत सहचारिणी ॥ ५० ॥ इति श्रुत्वा तदाधीत्य सर्वान्वेदान्यदूत्तम । जिल्वा सोमश्रियं श्रीमानुपयेमे विधानत ॥ ५१ ॥ इन वाक्योंसे अनुलोम और प्रतिलोम दोनो प्रकारके विवाहोका उल्लेख मिलता है ।
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(२) श्रीकृष्णने अपने भाई गजकुमारका विवाह, क्षत्रिय राजाकी कन्या अतिरिक्त, सोमशर्मा ब्राह्मणकी पुत्री 'सोमा 'से भी किया था, जिसका उल्लेख जिनसेनाचार्य और जिनदास ब्रह्मचारी दोनोंके हरिवशपुराणोमे पाया जाता है । यहाँ जिनदास ब्र० के हरिवंश पुराणसे एक पद्य नीचे दिया जाता है।
मनोहरतां कन्यां सोमशर्माग्रजन्मन' ।
सोमाख्या वृत्तवाश्चकी क्षत्रियाणा तथा परा ॥३४-२६|| ( ३ ) उज्जयिनीके वैश्य - पुत्र 'धन्यकुमार' का विवाह राजा श्रेणिककी पुत्री 'गुणवती' के साथ हुआ था । अपना कुल पूछा जाने पर इन्होने राजा श्रेणिकसे साफ कह दिया था कि मैं उज्जयिनीका रहनेवाला एक वैश्यपुत्र हूँ और तीर्थयात्राके लिये निकला हुआ हूँ । इस पर श्रेणिक गुणवती आदि १६ कन्याओं के साथ इनका विवाह किया था । जैसा कि रामचन्द्र-मुमुक्षु कृत 'पुण्यास्रवकथाकोश' से प्रकट है
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राजा (श्रेणिक | Sभयकुमारादिभिरर्द्धपथमाययौ राजभवन प्रवेश्य किं कुलो मवानिति पप्रच्छ । कुमारो व्रते उज्जयिन्या वैश्यात्मजो तीर्थयात्रिक । ततो नृपो गुणवत्यादिभि षोडशकन्याभिस्तस्य विवाह चकार ।। इसी पुण्यात्रवकथाकोश में 'भविष्यदत्त' नामके एक वैश्यपुत्रकी भी कथा है, जिसने हरिपुरके रिजय राजाकी पुत्री 'भविष्यानुरूपा से श्रीर हस्तिनापुरके राजा भूपालको कन्या 'स्वरूपा' से विवाह