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युगवीर - निबन्धावली
मद नही करना चाहिये । (अपनी जातिको ऊँचा और दूसरे की जाति को नीचा समझने रूप ) यह मद आत्मामे नीचत्वका प्रवेश करानेवाला है - उसे नीचे गिरानेवाला अथवा नीच बनानेवाला है । उच्चत्वा देनेवाला - आत्माको ऊपर उठानेवाला - शीलसयमादि गुणोके प्रति आदरभाव है - भले ही उन गुणोका प्रादुर्भाव किसी नीच जातिके व्यक्ति ही क्यो न हुआ हो और इसलिये सत्पुरुषो - को उसी आदरभाव से काम लेना चाहिये - जातिभेदके चक्कर मे पड कर गुरियो अथवा गुरोका तिरस्कार नही कर देना चहिये ।'
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भावार्थ - इन ब्राह्मणादिक जातियोका बनना और बिगडना सब गुणोपर ही मुख्य आधार रखता है- उनका मूल जन्म नही किन्तु गुणसमुदाय है । गुणोके आविर्भावसे एक नीच जातिवाला ऊँच जातिका और गुणो प्रभावसे एक ऊँच जातिवाला नीचजातिका व्यक्ति बन जाता है। किसीकी जाति अटल या शाश्वती नही है -ग्रटल है तो एक मनुष्यजाति है, जो जीवनभर तक छूट नही सकती, उसी पर पूरा लक्ष्य रखना चाहिये । इसीलिये महज जन्मकी वजह से दूसरोके व्यक्तित्वका तिरस्कार करना उचित नही - उचित है दूसरोके गुरगोका आदर करना, उनके गुरणो के आविर्भावकी भावना रखना और उसका सब ओर से प्रयत्न करना, यही दोनो के लिये उत्कर्षका साधक है । इसीसे प्राचार्य महोदय ग्रन्थ के अन्तिम भागमे लिखते हैं। यस्यास्ति सम्यक्त्वमसौ परिष्ठो यस्यास्ति सम्यक्त्वमसौ वरिष्ठ । यस्यास्ति सम्यक्त्वममौ कुलीनो यस्यास्ति सम्यक्त्वमसौ न दीन ॥ ७७ ॥
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'जो मनुष्य सम्यक्त्व गुरणका धारक है वह प्रयन्त चतुर है, श्रेष्ठ है, कुलीन है और प्रदीन है।'
भावार्थ - जैनधर्मके अनुसार नीचसे नीच जातिका मनुष्य भी सम्यक्त्वगुरणका धाररण कर सकता है- एक चाण्डालका पुत्र भी