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देशकी वर्तमान परिस्थिति और हमारा कर्त्तव्य
२१५ हैं, वे सख्त गलती में हैं और बहुत बड़ी भूल करते हैं। उनका यह सब व्यवहार ( तर्ज़-तरीका ) स्वतत्रताके इस संग्रामकी नीतिके बिल्कुल विरुद्ध है और हिसाके रगमे रंगा हुआ है । जान पड़ता है ऐसे लोगोने स्वतत्रताके इस धर्म युद्धका रहस्य नही समझा । वे अभी क्रोधादिक अन्तरग शत्रुओसे पीडित हैं, उन्होने अपने कषायोको ( जजबात को ) दमन नही किया, अपनी कमजोरियो पर काबू नही पाया, और इसलिये उन्हे निर्बल समझना चाहिए । ऐसे निर्बल और गुमराह मार्ग भूले हुए ) सैनिकोसे स्वतंत्रताका यह मैदान नही लिया जा सकता । ऐसे लोग बहुधा कार्य सिद्धिमे उलटे विघ्नस्वरूप हो जाते है । बम्बईका हगामा ( दगा ) और मोपलोका उपद्रव ऐसे ही लोगोकी तू तो फल है । इसलिये यदि हम स्वराज्य चाहते हैं तो हमे अपनी और अपने भाइयोकी इन त्रुटियो और कमजोरियो - को भी दूर करना चाहिए। इनके दूर हुए बिना हम बलवान नही हो सकते, न साधारण जनताकी सहानुभूतिको अपनी ओर खीच सकते है और न श्रागे ही बढ सकते है ।
हमारा मुख्य कर्तव्य इस समय यही होना चाहिए कि हम विश्वप्रेमको अपनाएँ, उसे अपना मूल-मंत्र बनाएँ, सर्वत्र प्रेमकी ज्योति जगाएँ, जो कुछ काम करे उसमे ढोग या पक्षपात न हो और जो काम दूसरोसे कराएँ वह भी उसी प्रेमके आधार पर कराएँउसमे जरा भी जब सख्ती या जबरदस्तीका नाम न हो। साथ ही, हमे स्वराज्यकी नीतिको, स्वराज्यसे होनेवाले लाभोको वर्तमान असहयोग आन्दोलनके अमली मशा व मानी ( श्राशय तथा अर्थ ) को और अहिसा के गहरे तत्त्वको बहुत खुले शब्दोमे समझाकर साधारण जनता पर प्रगट करना चाहिए, जिससे कोई भी शख्स किसी प्रकार के धोखे मे न रह सके । और अपने आचार-व्यवहारके द्वारा हमे पबलिकको इस बातका पूरा विश्वास दिलाना चाहिए कि उनकी वजहसे कोई भी भारतवासी चाहे वह हिन्दू, मुसलमान'
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