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युगवीर-निबन्धावली भेद अतात्त्विक है। ___ भावार्थ-सब मनुष्य मनुष्यजातिकी अपेक्षा समान हैं-एक ही तात्त्विक जातिके अग है-और प्राचार अथवा वृत्तिके बदल जाने पर एक अतात्त्विक जातिका व्यक्ति दूसरी अतात्विक जातिका व्यक्ति बन सकता है । अत एक जातिके व्यक्तिको दूसरी जातिके व्यक्तिसे कभी घृणा नहीं करनी चाहिये और न अपनेको ऊँचा तथा दूसरेको नीचा ही समझना चाहिये । ऊँच-नीचकी दृष्टिसे यह भेद-कल्पना ही नही है।
भेदे जायेत विप्राया क्षत्रियो न कथचन ।
शालिजातौ मया दृष्ट कोद्रवस्य न सभव ॥ २६ ॥ 'यदि इन ब्राह्मणादि जातियोके भेदको तात्त्विक भेद माना जाय तो एक ब्राह्मणीसे कभी क्षत्रिय-पुत्र पैदा नहीं हो सकता, क्योकि चावलोकी जातिमे मैंने कभी कोदोको उ पन्न होते हए नही देखा।'
भावार्थ- इन जातियोमे चावल और कोदो-जैसा तात्त्विक भेद मानने पर एक जातिकी स्त्रीसे दूसरी जातिका पुत्र कभी पैदा नहीं हो सकता--ब्राह्मणीके गर्भसे क्षत्रिय-पुत्रका और क्षत्रियाके गर्भसे वैश्य अथवा ब्राह्मण-पुत्रका उत्पाद नही बन सकता। परन्तु ऐसा नहीं है, ब्राह्मणोमे अथवा ब्राह्मरिगयोके गभसे कितने ही वीर-क्षत्रिय पैदा हुए है और क्षत्रियोमे अथवा क्षत्राणियोके गर्भसे अनेक वैश्यपुत्रोका उद्भव हुआ है जिनके उदाहरणोसे शास्त्र भरे हुए हैं और प्रत्यक्षमे भी ऐसे दृष्टान्तोकी कमी नही है । अग्रवाल जो किसी समय क्षत्रिय थे वे आज प्राय वैश्य बने हुए हैं। ऐसी हालतमे यह सुनिश्चित है कि इन जातियोमे कोई तात्त्विक अथवा प्राकृतिक भेद नही है-सबकी एक ही मनुष्य जाति है। उसीको प्रधानत लक्ष्य में रखना चाहिये।
ब्राह्मणोऽवाचि विप्रेण पवित्राचारधारिणा । विप्राया शुद्धशीलायां जनिता नेदमुत्तरम् ॥२७॥