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युगबीर-निबन्धावली पर नहीं पाता है । ज़रूर आवेगा । सच्चे भावो, सच्चे हृदयसे निकले हुए वचनों और सच्चे आचरणोका असर हुए बिना नहीं रह सकता । इसी बातको दूसरे शब्दोंमे यो समझना चाहिए कि यदि हम देखते हैं कि हमारा एक भाई विदेशी कपडा पहनना और विदेशी कपडोका व्यापार करना नहीं छोडता-उस पर आग्रह रखता है-अथवा सरकारको उसके अन्याय और अत्याचारोंमें किसी न किसी तौर पर (सेवामे रहकर या दूसरे तरीकोसे) मदद दे रहा है तो, हमे उसको एक प्रकारसे पतित अथवा अनभिज्ञ समझना चाहिए---मार्ग भूला हुआ मानना चाहिए-और- उसके उद्धारके लिये, उसे यथार्थ वस्तुस्थितिका ज्ञान कराने और ठीक मार्गपर लानेके वास्ते हर एक 'जायज ( समुचित ) तरीकेसे समझानेका यत्न करना चाहिए । और जब तक वह न समझे तब तक अपने भावो
और आचरणोमे टि समझकर-अपने ज्ञानको उस कामके लिये अपर्याप्त मानकर-आत्मशुद्धि और स्वज्ञान-वृद्धि आदिके द्वारा अपनी त्रुटियोको दूर करते हुए बराबर उसको प्रेमके साथ समझाने और उसपर अपना असर डालनेकी कोशिश करते रहना चाहिए। एक दिन आवेगा जब वह जरूर समझ जायगा और सन्मार्गको ग्रहण करेगा। चुनांचे ऐसा बराबर देखनेमे पा रहा है । जो भाई पहले विदेशी कपडेको नही छोडते थे वे आज खुशी-खुशी उसका त्याग कर
परतु जो लोग अपनी बात न माननेवाले भाइयो पर कुपित होते है , नाराजगी जाहिर करते है, उन्हे कठोर शब्द कहते है, धमकी देते है, उनके साथ बुरा सलूक करते है, उनका मजाक उडाते है, अपमान करते है बायकाट करके अथवा धरना देकर उन पर अनुचित दबाव डालते हैं, अनेक प्रकारकी जबरदस्ती और जबसे काम लेते हैं, और इस तरह दूसरोकी स्वतत्रताको हरण करके उन्हे उनकी इच्छाके विरुद्ध कोई काम करने या न करनेके लिये मजबूर करते