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युगवीर-निबन्धावली यह सब कितना अत्याचार है । विना अपराध ही स्त्रियाँ ये सब दुख कष्ट तथा हानियां उठाती हैं और अपने मनुष्योचित अधिकारी तथा लाभोसे वंचित रक्खो जाती है, इस अन्याय और अधेरका भी कही कुछ ठिकाना है ।। अब बतलाइये दोनोमेसे आप अपनी इस मनहूस प्रथाका कौनसा कारण ठहराते है ? पहला कारण बतलाकर व्यर्थ ही स्त्रीजातिका अपमान करना चाहते है या दूसरे कारणको मानकर स्त्रियोपर अपने अत्याचारोको स्वीकार करते हैं ? दोनोमेसे कोई एक कारण जरूर मानना और बतलाना पडेगा अथवा दोनोको ही स्वीकार करना होगा । परतु वह कारण चाहे कोई हो पुरुषोके लिये यह बात कलककी, लज्जाकी और सभ्यससारमे उनके गौरवको घटानेवाली जरूर है कि उन्हे प्रकृति तथा न्याय-नियमोके विरुद्ध अपनी स्त्रियोको पर्देमे रखना पडता है।'
मैं उस वीरागनाके इस दिव्यभाषणको सुनकर दग रह गया और मुझसे उस वक्त यही कहते बना कि, जरा सोचकर आपके प्रश्नका समुचित उत्तर फिर निवेदन करूँगा। __ मेरा इतना कहना ही था कि, आकाशमे मेघोकी गर्जना और वर्षाकी कुछ बू'दोने मेरा वह स्वप्न भग कर दिया और मैं अपनेको पूर्ववत् शय्या पर लेटा हा ही अनुभव करने लगा। परन्तु अभी कुछ मिनिट पहले जो अद्भुत दृश्य देखा था और जो दिव्य भाषण सुना था उसकी याद चित्तको बेचैन किये देती थी कि या तो इसे स्त्रीजातिका अपमान कहना चाहिये और या यह कहना चाहिये कि वह स्त्रियो पर पुरुषोका अत्याचार है। अथवा यो कहना होगा कि उसमे दोनोका ही अपमान और अत्याचारका-सम्मिश्रण है। विचारोकी इसी उधेडबुनमे सबेरा हो गया और मैं अपना स्वप्नसमाचार दूसरोको सुनाने लगा।
___ सभव है कि पाठकोमेसे भी कुछ महानुभाव उस दिव्य-स्त्रीके प्रश्न पर अच्छा विचार कर सके और उत्तरमें तीसरे ही किसी निर्दोष