________________
२१२
युगवीर-निबन्धावली जाय कि सरकारने, इस कृत्यके द्वारा, अपने पैरमे आप ही कुल्हाडी मारी है, तो शायद कुछ अनुचित न होगा। यह इस अनुचित दमनका अथवा इन बेजा और बेमौका सस्तियोका ही नतीजा है जो भारतमें प्रिन्स आफ वेल्सका उतना भी स्वागत नही हो रहा है जो कि दूसरी हालतमे जरूर होता । उच्चाधिकारियोने शायद यह सोचा था कि बडे बडे लीडरोको जेलमे भेज देनेसे हम जनताके द्वारा शाहजादे साहबका अच्छा स्वागत करा सकेगे। परन्तु मामला उस. से बिल्कुल उलटा निकला और वे पहली खट्टी छाछसे भी गये।
हमारी रायमे यदि सरकार सचमुच ही भारतका हित चाहेंवाली है, तो उसका यह कार्य बहुत ही अदूरदर्शिता और नासमझीका हुआ है । इस समय सरकार अधिकार-मदसे उन्मत्त है। वह किसीकी कुछ सुनती नहीं और न स्वय उसे कुछ सूझ पड़ता है । तो भी प्रजाकी पोरसे बराबर शाति-जल छिडका जानेपर जब उसका नशा उतरकर उसे होश आवेगा तो वह ज़रूर अपनी भूल मालूम करेगी और उसे अपनी वर्तमान कृति ( कर्तृत ) पर घोर पश्चात्ताप होगा।
परन्तु सरकारके इस चक्करमे पडकर कही हमे भी भूल न कर बैठना चाहिए। हमे समझना चाहिए कि जिसका आसन डोलता है, वह उसके थामनेकी सभी कुछ चेष्टाएँ किया करता है । घबराया हुआ मनुष्य क्या कुछ नहीं कर बैठता ? और यही सब सोच समझ कर हमे अपने कतव्यके पालनमे बहुत ही सतर्क और सावधान रहने की ज़रूरत है। ऐसा न हो कि सरकारके किसी घृणितसे घृणित कार्य पर उत्तेजित होकर, कष्टोको सहन करनेमे कायर बनकर और इष्ट-मित्रादिकोंके वियोगमे पागल होकर, हम अशाति कर बैठे और हिसा पर उतर आवे । यदि ऐसा हुआ तो सर्वनाश हो जायगा। सारी करी कराई पर पानी फिर जायगा और सरकारका काम बन जायगा, क्योकि सरकार इस आन्दोलनको बन्द करके हमारे चुप