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देशकी वर्तमान परिस्थिति और हमारा कर्तव्य २१३ न बेठनेकी हालतमें, ऐसा चाहती ही है और इसीमे अपना कल्याण समझती है। परंतु हमारे लिये यह बिल्कुल ही अकल्याणकी बात होगी। हम पशुबलके द्वारा सरकारको जीत नहीं सकते-इस विषयके साधन उसके पास हमसे बहुत ही ज्यादा हैं-ौरन इस प्रकारकी जीत हमे इष्ट ही है, क्योंकि वास्तवमे ऐसी जीत कोई जीत नही हो सकती । उसमे हृदयका कॉटा बराबर बना रहता है। हाँ, आत्मबलके द्वारा हम उसपर जरूर विजय पा सकते हैं, और यही सच्ची तथा स्थायी जीत होगी। सरकार यदि पशुबलका प्रयोग करती है तो उसे करने दीजिए । हमारी नीति उसके साथ 'शठं प्रति शाठ्य' की न होनी चाहिए-हमे पशुबलका उत्तर आत्मबलके द्वारा सहनशीलतामे देना होगा और इसीमे हमारी विजय है । हमे क्रोधको क्षमासे अन्यायको न्यायसे, अशातिको शातिसे और द्वषको प्रेमसे जीतना चाहिए,तभी स्वराज्य-रसायन सिद्ध हो सकेगी। हमारा यह स्वतत्रताका युद्ध एक धार्मिक युद्ध है और वह किसी खास व्यक्ति अथवा जातिके साथ नहीं बल्कि उस शासन-पद्धतिके साथ है जिसे हम अपने लिये घातक और अपमान-मूलक समझते है। हम इस शासन-पद्धतिको उलट देना अथवा उसमे उचित सुधार करना जरूर चाहते हैं,परतु ऐसा करनेमे किसी जाति अथवा शासनविभागके किसी व्यक्तिसे घृणा (नफरत ) करना या उसके साथ द्वेष रखना हमारा काम नहीं है । हमे बुरे कामोसे जरूर नफरत होनी चाहिए परतु बुरे कामोके करनेवालोसे नहीं। उन्हे तो प्रेमपूर्वक हमे सन्मार्ग पर लाना है । नफरत करनेसे वह बात नहीं बन सकेगी।
यदि हम किसी व्यक्तिको प्रेमके साथ समझा-बुझाकर सन्मार्ग पर नहीं ला सकते हैं तो समझना चाहिए कि इसमे हमारा ही कुछ खोट है, अभी हम अयोग्य हैं, और इसलिये हमे अपने उस खोट तथा अयोग्यताको मालूम करके उसके दूर करनेका सबसे पहले यत्न करना चाहिए। उसके दूर होते ही आप देखेंगे कि वह कैसे सन्मार्ग