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देशकी वर्तमान परिस्थिति और हमारा कर्तव्य २०६ हम पर शासन कर रही है और हमें काठकी पुतलियोकी तरहसे नचा रही है। और यही वजह है कि काँग्र सने इस महामत्रकी साधनाके लिये, साधनोपायके तौरपर, चार मुख्य शर्ते रक्खी है, जिन्हे चार प्रकारके व्रत अथवा तप कहना चाहिए और जिनका पालन करना प्रत्येक असहयोगी तथा देशप्रेमीका प्रथम कर्तव्य है । वे चार शर्ते हैं १ अहिसा-शाति, २ स्वदेशी, ३ हिन्दू-मुसलिम-एकता और ४ अछूतोद्धार । इनमे भी अहिसा तथा शाति सबसे प्रधान हैं और वही इस समय खसूसियतके साथ कसौटी पर चढ़ी हुई है।
हमे कसौटीपर सच्चा उतरने और वतमान परीक्षामे पास होनेके लिये इस वक्त देशके सर्वप्रधान नेता महात्मा गाधीकी उन उदार
और महत्वपूर्ण शिक्षाप्रोपर पूरी तौरसे ध्यान देनेकी खास जरूरत है जो बराबर उनके पत्रो यग इडिया, नवजीवन और हिन्दी नवजी. वनमे प्रकाशित हो रही है। हमारा इस समय यही खास एक व्रत हो जाना चाहिए कि हम जैसे भी बनेगा, सब कुछ सहन करके शातिकी रक्षा करेंगे, सरकारको प्रोरसे शॉति भग करानेकी चाहे जितनी भी उत्तेजना क्यो न दी जाय और चेष्टाएँ क्यो न की जाये परन्तु हम गातिको जरा भी भंग न होने देगे-अपनी तरफसे कोई भी ऐसा कार्य न करेगे जिसका लाजिमी नतीजा शाति-भंग होता हो-और बराबर अपने निर्दिष्ट मार्गमे आगेकी ओर कदम बढ़ाते हुए अमन कायम रक्खेगे। इसीमे सफलताका सारा रहस्य छिपा हुआ है।
सकटकी जो घटाएँ इस समय देश पर छाई हुई है वे सब क्षणिक है और हमारी जॉचके लिये ही एकत्र हुई जान पड़ती हैं। उनसे हमे जरा भी घबराना और विचलित होना नहीं चाहिए । मंत्रो तथा विद्याओंके सिद्ध करनेमे उपसर्ग आते ही हैं। जो लोग उन्हें धैर्य
और शातिके साथ झेल लेते हैं वे ही सिद्धि-सुखका अनुभव करते हैं । असहयोग-मत्र और स्वराज्य-निधिकी सिद्धिके लिये हमें भी कुछ उपसों तथा सकटोंको धैर्य और शातिके साथ सहन करना होगा,