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देश की वर्त्तमान परिस्थिति और हमारा कर्त्तव्य
(अग्र ेजी राज्यकालसे सम्बद्ध)
आजकल देशकी हालत बहुत ही नाजुक हो रही है । वह चारो प्रोर अनेक प्रकारको आपत्तियोसे घिरा हुआ है । जिधर देखो उधरसे ही बडे बडे नेता और राष्ट्रके सच्चे शुभचिन्तकोकी गिरफ्तारी तथा जेल यात्राके समाचार आ रहे हैं । एक विकट सग्राम उपस्थित है । सरकार ( नौकरशाही ) पूरे तौरसे दमन पर उतर आई है और लक्षणोंसे ऐसा पाया जाता है कि वह भारतीयोकी इस बढती हुई महत्वाकाक्षा (स्वराज्यप्राप्तिकी इच्छा ) को दबाने और उनके सपूर्ण न्याय्य विचारोको कुचल डालनेके लिये सब प्रकार के अत्याचारोको करने कराने पर तुली हुई है । वह देशके इस महाव्रत ( अहिंसाशाति) को भग कराकर उसे और भी ज्यादा पददलित करना और गुलामीकी जजीरोसे जकडना चाहती है और इसके लिये बुरी तरहसे उन्मत्त जान पडती है । इस समय सरकारका असली 'नग्न' रूप बहुत कुछ स्पष्ट दिखाई देने लगा है और यह मालूम होने लगा है कि वह भारतकी कहाँ तक भलाई चाहनेवाली है । जो लोग पहले ऊपरके मायामय रूपको देखकर या बुरकेके भीतर रूपराशिकी कल्पना करके ही उस पर मोति थे, वे भी अब पर्दा (नक्काब) उठ जाने तथा प्राच्छादनोके दूर हो जानेसे नग्न रूपके दर्शन करके,