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युगवीर-निबन्धावली जैसे वीर पुरुषोके दर्शन होने लगेगे और हम सब प्रकारसे अपने मनोरथोको सिद्ध करनेमे समर्थ हो सकेगे।
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* यह निबन्ध आज से कोई ५२ वर्ष पहले निपा गया था और देवबन्द जिला सहारनपुरमे प्रकट होने वाले 'कामधेन'नामक साप्ताहिक पत्र ३० भितम्बर मन् १९१० - कमे प्रकाशित हना था । उस ममय घोका भाव म्पयेका प्राय १० हटाक और द्द्वका नीन पाने मेरका या । बादको मन् १६४६ मे इम छ प्रावश्यक परिवतनो तथा परिवर्धनो माय अनेकान्त की माचकी किरगामे प्रकाशित किया गया था। उस समय घी-दूधका ही रोना न था,किन्तु दशमे अन्न तथा दूसरे खाद्य पदार्थोका जी सकट उपस्थित था। अनेकान्न'की उक्त किरणसे ही यह यहाँ उदधृत किया गया है। अाजकी म्यिान पोर भी ज्यादा खराव है । म्हंगाई उत्तरोत्तर बढ़ रही है गोण तथा अन्य दुधारू पशु पहले से अधिक मख्या मे कट रहै है जिगने शुद्ध बी-दूध का प्रभाव होता जा रहा है। ऐसी स्थितिमे हमे बहुत ही सतर्क तथा पावधान होना चाहिये और स्वावलम्बनको अपनाकर मामूहिक प्रयत्न द्वारा उस दोष. पूर्ण परिस्थितिको ही बदल देना चाहिये जि पने हमारी यह सब दुर्दशा कर रक्खी है और करने को तत्पर है।