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जैनियोंका अत्याचार
जो जैनी वनस्पतिकायके जीवोंकी भी रक्षा करते है, उनके ऊपर अत्याचारके दोषका अारोपण होते देख बहुतसे पाठक चौकेगे-परन्तु नही, चौकनेकी जरूरत नही है । वास्तवमे जैनियोने घोर अत्याचार किया है और वे अब भी कर रहे है। हमारे भाइयोने अभी तक इस
ओर लक्ष्य ही नही दिया और न कभी एकान्तमे बैठकर इस पर विचारही किया है। यदि जैनियोके अत्याचारकी मात्रा बढी हुई न होती तो आज जैनियोका इतना पतन कदापि न होता-जौनयोकी यह दर्दशा कभी न होती । जैनियोका समस्त अभ्युदय नष्ट होजाना,इनके ज्ञान-विज्ञानका नामशेष रह जाना अपने बल-पराक्रमसे जैनियोका हाथ धो बैठना,अपना राज्य गँवा देना, धर्मसे च्युत और प्राचारभ्रष्ट हो जाना तथा जैनियोकी सख्याका दिनपरदिन क्म होते जाना और जैनियोका सर्वप्रकारसे नगण्य और निस्तेज हो रहना, यह सब अवश्य ही कुछ अर्थ रखता है-इन सबका कोई प्रधान कारण ज़रूर है, और वह है 'जैनियोका अत्याचार'। _ जिस समय हम जैनसिद्धान्तको देखते है, जैनियोकी कर्म-फिलासोफीका अध्ययन करते है और साथ ही जैनियोकी यह पतितावस्था क्यो? लौकिक और परमार्थिक दोनोप्रकारकी उन्नतिसे जैनी इतने पीछे क्यो ? इस विषयपर अनुसधानपूर्वक गभीर भावसे गहरा