________________
विवाह-समुद्देश्य
१४३ प्रत्येक कुटुम्बको 'सुव्यवस्थित भोर बलान्य' बनानेके लिए उसके प्रधान पुरुषोको इन बातोपर ध्यान रखनेकी खास जरूरत
(१) स्वय सदाचारसे रहना और अपने कुटुम्बियों तथा प्राश्रितोको सदाचारके मार्ग पर लगाना । ऐसा कोई काम न करना जिसका समाजपर बुरा असर पडे ।
(२) अपने बुद्धि-बल शरीर-बल और धन-बलको बराबर बढाते रहना और सदा प्रसन्न चित्त रहनेकी चेष्टा करना।
(३) सबके दुख-सुखका पूरा खयाल रखना, सबको परस्पर प्रेम तथा विश्वास करना सिखलाना और दुखियोके दुख दूर करनेका प्रयत्न करना । साथ ही, किसीपर अत्याचार न करना और दूसरोंके द्वारा होते हुए अत्याचारोको यथाशक्ति रोकना ।
(४) वीर्यका दुरुपयोग न करके प्राय सन्तानके लिए ही मैथुन करना। किसी व्यसनमें न फंसना और जितेन्द्रिय रहना।
(५) स्वय कुसङ्गतिसे बचना और अपने परिवारके लोगोको बचाते रहना । साथ ही, अपनी सन्ततिका कभी बाल्यावस्थामें विवाह न करना।
(६) सन्तानकी तथा अन्य कुटुम्बियोकी शिक्षाका समुचित प्रबन्ध करना,उन्हे धर्मके मार्ग पर लगाना और ऐसी शिक्षा देना जिससे वे परावलम्बी न बनकर प्राय स्वावलम्बी बनें और देश, धर्म तथा समाजके लिये उपयोगी सिद्ध हो।
(७) कुटुम्बभरमे एकता, सत्यता, समुदारता दयालुता,गुण-पाहकता,प्रात्म-निर्भरता और सहनशीलता आदि गुणोका प्रचार करना । साथ ही, ईर्षा, द्वेष और प्रदेखसका-भाव आदि अवगुणोको हटाना ।
(८) रूढियोका दास न बनकर कुरीतियोको दूर करना और जो कुछ युक्ति तथा प्रमाणसे समुचित और हितरूप जेंचे उसीके अनुसार चलना।