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वसुदेवका शिक्षाप्रद उदाहरण
श्रीनेमिनाथ तीर्थकरके चचा और श्रीकृष्ण महाराजके पिता वसुदेवजी जनसमाजमें एक सुप्रसिद्ध व्यक्ति हो गये हैं। हरिवशपुराणादि जैनकथाग्रन्थोंमें आपका विस्तारके साथ वर्णन दिया है। यहाँपर मैं आपके जीवनकी सिर्फ चार घटनापोका उल्लेख करता हूँ, एक 'देवकीसे विवाह',दूसरी'जरा नामकी म्लेच्छ कन्यासे विवाह', तीसरी 'प्रियगुसुन्दरीसे विवाह, और चौथी घटना है 'रोहिणी का स्वयबर'। देवकीसे विवाह
देवकी राजा उग्रसेनके भाई देवसेन (देवक) की पुत्री, नप भोजकवृष्टिको पौत्री और महाराजा सुवीरकी प्रपौत्री थी। वसुदेव राजा अन्धकवृष्टिके पुत्र और नृप-शूरके पौत्र थे। ये नुप'शुर' और देवकीके प्रपिताम इ 'सूवीर' दोनों सगे भाई थे। दोनोंके पिताका नाम 'चरपति' और पितामह (बाबा) का नाम 'यदु' था । ऐसा श्रीजिनसेनाचार्यने अपने हरिवंशपुराणामे सूचित किया है और इससे यह प्रगट है कि राजा उग्रसेन,देवसेन और वसुदेवजी तीनो आपसमे चचा-वाऊजाद भाई लगते थे और इसलिये देवसेवकी लड़की 'देवकी' रिश्वेमे उपसेन तथा वसुदेवकी भतीजी(भातृजा) हुई। इस देवकीसे वसुदेवला