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युगवीर - निबन्धावली
और उसके अर्थसम्बन्ध में कुछ गहरा उतरा जाय, तो मालूम होगा कि संसारकी कोई भी उपासना बिना मूर्तिके नही बन सकती - मूर्तिका अवलम्बन जरूर लेना पडता है, चाहे यह मूर्ति सूक्ष्म हो या स्थूल । आप किसीकी प्रशसा नही कर सकते जब तक कि मूर्तियोका सहारा न ले लेवे । शब्द, जिनके द्वारा परमात्माकी या किसीकी भी स्तुति की जाती है, नाम लिया जाता है और गुरणानुवाद गाया जाता है, वे सब मूर्तिक हैं, मूर्तिकसे उत्पन्न होते हैं, मूर्तिक पदार्थोंसे रोके जाते है, फोनोग्राफ में भरे जाते हैं और इसलिये एक प्रकारकी सूक्ष्म मूर्तियाँ हैं । इसी तरह शब्दोके द्योतक जो अक्षर हैं वे भी शब्दोकी नानाप्रकारकी आकृतियाँ हैं मूर्तियाँ हैं जिन्हे भिन्न भिन्न देशो अथवा जातियोने अपने अपने व्यवहारके लिये कल्पित कर रखा है। हाथीको संस्कृतमे 'गज', प्राकृतमे 'गय', फारसीमे 'फील', अरबीमे पील', और अजीमे 'एलिफेट' (Elephant ) कहते है । अन्यान्य भाषाश्रमे उसके दूसरे नाम हैं और एक एक भाषामे कई कई नाम भी है - जैसे संस्कृतमे इभ, करी इत्यादिक - और ये सब नाम अनेक लिपियोमे भिन्न भिन्न प्रकारसे लिखे जाते हैं । इन शब्दरूप मूर्तियोंके कानोसे टकराने पर या अक्षररूप मूर्तियोंके नेत्रोके सामने आने पर जब हाथी नामके एक विशाल जन्तु ( जानवर ) का बोध होता है तो वह हाथोकी साक्षात् ( तदाकार) मूर्तिको देखनेपर उससे कही अधिक हो सकता है और होता है । हाथीके नामसे हाथीका सामान्य ज्ञान ही होता है, परन्तु उसकी तदाकार मूर्तिके देखनेसे रङ्ग-रूप और आकार - प्रकारादिका बहुत कुछ हाल मालूम हो जाता है । यही दोनोमे विशेष है, और इसी विशेषकी वजह से ग्राजकल विद्वान् लोग शिक्षालयोमे भी चित्रो और मूर्तियोके द्वारा बालकोको शिक्षा देना ज्यादा पसन्द करने लगे है ।
परमात्मा के सम्बन्धमे भी यही सब बाते समझ लेनी चाहिएँ। परमात्मा ईश्वर, परब्रह्म, अल्ला, खुदा, गौड ( God ) आदि