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चारुदत्त सेठ का शिक्षाप्रद उदाहरण हरिवंशपुराणादि जैनकथा-ग्रन्थोमे चारुदत्त सेठकी एक प्रसिद्ध कथा है । यह सेठ जिस वेश्यापर आसक्त होकर वर्षों तक उसके घर पर, बिना किसी भोजनपानादि सबधी भेदके, एकत्र रहा था और जिसके कारण वह एक बार अपनी सपूर्ण धन संपत्तिको भी गंवा बैठा था उसका नाम 'वसंतसेना था। इस वेश्याकी माताने, जिससमय धनाभावके कारण चारुदत्त सेठको अपने घरसे निकाल दिया और वह धनोपार्जन के लिये विदेश चला गया उस समय वसतसेनाने, अपनी माताके बहुत कुछ कहने पर भी, दूसरे किसी धनिक पुरुषसे अपना सबध जोडना उचित नहीं समझा और तब वह अपनी माताके घरका ही परित्याग कर चारुदत्तके पीछे उसके घर पर चली गई। चारुदत्तके कुटुम्बियोने भी वसतसेनाको आश्रय देनेमे कोई आनाकानी नही की । वसतसेनाने उनके समुदार आश्रयमें रहकर एक आयिकाके पाससे श्रावकके १२ व्रत ग्रहण किये, जिससे उसकी पूर्व परिणति पलटकर उच्च तथा धार्मिक बन गई, और वह बराबर चारुदत्तकी माता तथा स्त्रीको सेवा करती हुई नि सकोच-भावसे उनके घर पर रहने लगी। जब चारुदत्त विपुल धनसम्पत्तिका स्वामी बनकर विदेशसे अपने घर पर वापिस पाया और उसे वसतसेनाके स्वगृह पर रहने आदिका हाल मालूम हुआ तब उसने बडे हर्षके साथ वसतसेना को अपनाया अर्थात्, उसे अपनी स्त्री रूपसे स्वीकृत किया। चारुदत्त के इस कृत्यपर-अर्थात्,एक वेश्या जैसी नीच स्त्रीको