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जैनियोंका अत्याचार
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मनुष्यका यह धर्म नही है कि यदि कोई मनुष्य किसी नदी श्रादिमे मिरता हो या बहता जाता हो तो उसको उलटा धक्का दे दिया जावे और यदि वह किनारेके पास भी हो और निकलना भी चाहता हो तो उसको ठोकर मार कर श्रौर दूर फेक दिया जावे, जिससे वह निकलने के काबिल भी न रहे। बल्कि इसके विपरीत उसको न गिरने देना या हस्तावलम्बन देकर निकालना ही मनुष्य-धर्म कहलाता है । इसीलिए जेनियोके यहाँ 'स्थितिकरण' धर्मका अग रक्खा गया है । (स्वामी समन्तभद्राचार्यने 'रत्नकरड श्रावकाचार' में इसका स्वरूप इस प्रकार वर्णन किया है
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दर्शनावरणाद्वापि चलतां धर्मवत्सले । प्रत्यवस्थापनं प्राज्ञै स्थितिकरणमुच्यते ॥
अर्थात् जो लोग किसी कारणवश अपने यथार्थ श्रद्धान तथा चारित्रसे डिगते हो, तो धर्मसे प्रेम रखनेवाले पुरुषोको चाहिये कि उनको फिरसे अपने श्रद्धान और आचरणमे दृढ कर दे । यही 'स्थितिकरण' अग कहलाता है ।
परन्तु शोक | जैनियोने यह सब कुछ भुला दिया । गिरतेको सहारा या हस्तावलम्बन देना तो दूर रहा इन्होने उलटा उसको और ज़ोरका धक्का दिया। श्रद्धान और प्राचररणसे डिगना तो दूसरी बात, यदि किसीने रूढियो (आधुनिक जैनियो के सम्यकूचारि
१ ) के विरुद्ध ज़रा भी आचरण किया अथवा उनके विरुद्ध अपना स्ख़याल भी जाहिर किया तो बस उस बेचारे की शामत श्रागई, और वह झट जनसमाजसे अपना अलग जीवन व्यतीत करनेके लिए मजबूर किया गया । जैनियोके इस अत्याचारसे हजारो जैनी गाटे दस्से या विनैकया बन गये, लाखो अन्यमती हो गये, जैनियो - के देखते देखते मुसलमानी जमानेमे लाखो ब्राह्मण, क्षत्रिय मौर वैश्य जबरन मुसलमान बना लिये गये, और इस जमानेमे तो कितने. ही ईसाई बना लिये गये, परन्तु जैनियो के संगदिल ( प्राषाणहृक्य ..