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युगवीर-निबन्धावली इसी प्रकार यदि कोई मनुष्य किसीको दिनदहाड़े लूटता हो और दूसरा आदमी उसके इस कृत्यको देखता हुमा भी प्रानन्दसे हक्का गुडगुड़ाता रहे और उसके बचानेको कुछ भी कोशिश न करे, तो कहना होगा कि वह महा अपराधी है। जैनी लोग इस बातको बराबर स्वीकार करते आए है कि मिथ्यादृष्टि लोग अधे होते है-उन्हे हित-अहित कुछ भी सूझ नही पडता, परन्तु जैनियोक सन्मुख ही लाखो और करोडो मिथ्यादृष्टि अतत्त्वश्रद्धारूपी कुएँमे बराबर गिरते रहे तोभी इन सुदृष्टियोंको उनपर जराभी दया न आई । इन्होने अपने मौनव्रतको भगकर उनके बचाने या निकालनेकी कुछ भी चेष्टा नही की । और तो क्या इनके सामनेही बहुतसे इनके भाइयो (जैनियो)का धर्म-धन लूट लिया गया और वे मिथ्यादृष्टि बना दिये गये,परन्तु फिर भी इनके कठोर चित्तपर कुछ आघात नही पहुँचा । ये बराबर अपने आनन्दमे मस्त रहे । कोई जीयो या मरो, इन्होने उसकी कुछ पर्वाह नहीं की। बल्कि ये लोग उलटा खुश हुए और इन्होने जानबूझकर अपने बहुतसे भाइयोको लूटेरोके सुपूर्द किया। यदि किसी भाईसे कोई अपराध या खोटा आचरण बन गया तो इ होने रसको अपनेमेसे ऐसे निकालकर फैक दिया जैसा कि दूधमेसे मक्खीको निकाल कर फेक देते है। इन्होने उसको कुछ भी धीर-दिलासा नही दिया, न इन्होने उसके खोटे पाचरणको छडाकर धर्ममे स्थिर करने की कोशिश की और न प्रायश्चित्त आदिसे शुद्ध करनेका कोई यत्न ही किया। बल्कि उसके साथ बिल्कुल शो-सरीखा व्यवहार करना प्रारभ कर दिया । नतीजा इसका यह हुआ कि उसको अपनी ससारयात्राका निर्वाह करनेके लिए दूसरोका शरण लेना पड़ा और वह हमेशाके लिए जैनियोंसे बिछड गया। इससे समझ लीजिए कि
नियोने कितना बड़ा अपराध और अत्याचार किया है--कहाँ तक इन्होने अपने धर्मका उल्लंघन और कहा तक उसके विरुद्ध प्राचरण किया है।