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युगवीर-निबन्धावली ग्राह्य-स्त्री
यहाँ पर यह प्रश्न उठाया जा सकता है कि, विवाहके इस उद्देश्यको पूरा करनेके लिए किस वर्ण या जातिकी स्त्रीसे पारिणग्रहरण (विवाह) किया जाय? यह प्रश्न उसी प्रकारका होगा जिस प्रकार 'पेय' के सम्बन्धमे यह पूछा जाय कि उसमे कोनसे कूएँ या नदी आदिका पानी डाला जाय ? और जिस प्रकार उसका उत्तर अधिकसे अधिक इतना ही हो सकता है कि, जिस कुएँ या नदीका पानी पीनेके लिये मिल सकता हो और जिसके पीनेमें किसी प्रकारकी घृणा या सकोच न हो और जो साथ ही शुद्ध-साफ तथा निर्दोष हो, पेयके उद्देश्यमे बाधक न हो, वह सब पानी पीनेके लिए ग्रहण किया जा सकता है। उसी प्रकार यहाँ भी समझ लेना चाहिए। "जिस वर्ण या जातिसे, परस्पर व्यवहारके कारण, स्त्री मिल सकती हो और जिसके सेवनमें किसी प्रकारकी धूरणा या सकोच न हो और जो साथ ही शुद्ध-साफ तथा निर्दोष हो, शीलादि गुणोंसे युक्त हो, अगोपागसे दुरुस्त हो, रोग-रहित हो, पढी लिखीगुरगवती हो और विवाहके उद्देश्यमे किसी प्रकारसे बाधक न होसके वह स्त्री विवाहके लिए ग्राह्य है-ग्रहण किये जाने योग्य है''। इससे अधिक इस विषयमे, सर्वसाधारणकी दृष्टिसे, कोई खास नियम निर्धारित नही किया जा सकता । जैन शास्त्रोमे भी इस विषयका कोई सार्वकालिक और सार्वदेशिक एक नियम नही पाया जाता है। प्रस्तु।
* 'एक नियम नही पाया जाता' इसका कुछ अनुभव पाठकोको नीचेके अवतरणो तथा प्रमाणोसे हो जायगा, जो केवल इसे ही अनुभव कराने के एक मात्र उद्देश्यसे दिये जाते है । उनसे किसी खास रोतिरिवाजको पुष्ट करना या उसपर चलनेकी प्रेरणा करना यहा इष्ट