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युगवीर - freधावली
सकता है । इसीलिये श्रीवादीभसिंहसूरि-जैसे विद्वानोने कहा हैपरस्पrsfadar frवर्गो यदि सेव्यते । अनर्गलमद सौख्यमपवर्गो ह्यनुक्रमात् ।। - क्षत्रचूडामणि.
अर्थात् -- धर्म, अर्थ र कामका यदि एक दूसरेके साथ विरोध न करके सेवन किया जाय तो उससे सासारिक सुखोकी प्राप्ति अनिवार्य होती है, और क्रमसे मोक्ष मिलता है ।
काम - सेवनके लिये पुरुषको एक स्त्रीकी और स्त्रीको एक पुरुषकी आवश्यकता होती है । विना किसी विघ्न-बाधा के निर्दिष्ट रूपसे कामसेवन' होता रहे और उसके द्वारा धर्मैधिकी उपयुक्त ( यथोचित ) मात्रा रोगी के शरीरमें पहुँचती रहे, इसी अभिप्रायसे विवाह कर्मकी सृष्टि की गई है ।
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विवाहकर्मको 'दारपरिग्रह' या 'दारकर्म' भी कहते है, जो गृहस्थ धर्मका एक खास प्र है । स्त्री सहित रहनेका नाम ही 'गृहस्थ' है - जलभागकी जिसमे प्रधानता हो उसीको 'पेय' कहते है - वह गृहस्थ ही नही जिसके पास स्त्री नही । 'गृह' शब्द भी स्त्रीका वाचक है । इसीलिए सोमदेवसूरि यदि विद्वानोने लिखा
है
कुह-कट संघात 1- सोमदेव | कट- सहतिम् । -
- आशाधर ।
गृहिणी गृहमुच्यते न पुन गृह हि गृहिणीमाहुर्न कुड कृनदारपरिग्रह गृहस्थ गृहशब्दस्य दार-वचनत्वात् । - विज्ञानेश्वर ।
१. इस प्रकार के बाधा रहित काम सेवनको सोमदेवने 'अनुपहता रfत' और प्राशाधरने 'अक्लिष्टा रति' लिखा है ।
२ स किं गृहस्थो यस्य नास्ति सत्कलत्रसम्पति ।
- नीतिवाक्यामृते, मोमदेव.