________________
जैनियोंमें दयाका अभाव इस निबन्धका शीर्षक देखते ही पाठक चौकेगे और कहेगे कि यह क्या मामला है ? परन्तु नही, चौकनेकी बात नहीं है । यदि
आप धैर्य और शान्तिके साथ विचार करेगे, तो आपको स्वय ही उक्त शीर्षककी स यता सहजमे मालूम हो जायगी। ___ इसमे कोई सन्देह नही, और न इसमे किसी को कुछ आपत्ति हो सकती है कि जैनधर्म ही दया धर्मका सर्वोत्तम रीतिसे प्रतिपादन करनेवाला है । इसी धर्ममे जीवोकी जातियाँ, जीवोंके भेदप्रभेद और उनके उत्पत्ति-स्थान आदि बहुत विस्तारके साथ वर्णन किये गये है, जिनके जाने बिना वास्तवमे दया धर्मका पालन नहीं हो सकता । जैनियोके इस सर्वश्रेष्ठ अहिसा धर्मकी बहुतसे भिन्न धर्मावलम्बी निष्पक्ष विद्वानोने मुक्तकठसे प्रशसा की है और इस धमका बहुत कुछ आभार और उपकार मानते हुए इस बातको स्वीकार किया है कि, जिस समय इस भारत भूमि पर वैदिक धर्मका अधिक प्रचार था उस समय यहाँ पर घोर रूपसे पशुवध होता थाबेचारे मूक पशु मास-लोलुपी वा अधश्रद्धालु मनुष्योके द्वारा धमके व्याजसे यज्ञोमे होमे जाते थे, घर-घरमे रुधिर और मॉसकी कीचड मचती थी, लोग इतने निर्दय, स्वार्थपरायण और विवेकशून्य हो गये थे कि मनुष्यो तकको यज्ञमें हवन करते हुए उनका हृदय नहीं