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युगवीर-निबन्धावली पांच मैद वर्णन किये हैं । वसुनन्दिश्रावकाचार और धर्मसंग्रहश्रावकाचार नामके ग्रन्थोंमें प्रकारान्तरसे नाम', स्थापना', द्रव्य',
पक्रिभिः क्रियते सोऽहंद्यज्ञ कल्पद्र मो मत ॥-सागारध० अर्थात्-याचकोको उनकी इच्छानुसार दान देकर जगतकी आशा को पूर्ण करते हुए चक्रवत्ति सम्राट द्वारा जो जिनेन्द्रका पूजन किया जाता है, उसको 'कल्पद्रुम' पूजन कहते हैं । १ उच्चारिऊरण गाम, अरुहाईण विसुद्धदेसम्मि ।
पुफ्फाईणि खिविजति विण्णेया णामपूजा सा ॥- वसुनन्दिश्रा० अर्थात्-अहंतादिकका नाम उच्चारण करके किमी शुद्ध स्थानमे जो पुष्पादिकक्षेपण किये जाते है, उसको नामपूजन कहते है ।
२ तदाकार वा अतदाकार वस्तु मे जिनेन्द्रादिके गुणोका अारोपण और मकल्प करके जो पूजन किया जाता है, उसको स्थापना पूजन कहते है । स्थापना के दो भेद है-१ सद्भावस्थापना और १ असद्भावस्थापना । अरहतोकी प्रतिष्ठाविधिको 'सदभावस्थापना' कहते है। ( स्थापना पूजनका विशेष वर्णन जानने के लिये देखो वसुनन्दिश्रावकाचार आदि ग्रन्य)। ३ दव्वेण य दव्वस्स य जा पूजा जाण दव्वपूजा मा ।
दवेण गधसलिलाइपुव्वभरिगएण कायव्वा ।। तिविहा दव्वे पूजा मचित्ताचित्त मिस्मभेएरण । पच्चक्ख जिणाईण मचित्त पूजा जहाजोग्ग ।। तेसि च सरीराण दव्वसुदस्म वि अचित्त पूजा मा । जा पुण दोण्ह कीरइ णायव्वा मिस्मपूजा मा ।।-वसुनन्दिश्राव०
अर्थात्-द्रव्यसे और द्रव्यकी जो पूजाकी जाती है, उनको द्रव्यपूजन कहते है । जलचदनादिकसे पूजन करनेको द्रव्यसे पूजन करना कहते हैं और द्रव्यको पूजा सचित्त, अचित्त तथा मिश्रके भेदसे तीन प्रकार है । साक्षात् श्रीजिनेन्द्रदिके प्जनको 'सचित्त द्रव्यपूजन' कहते