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युगवीर-निबन्धावली धर्मववरणके लिये शूद्रोका समवसरणमें जाना प्रगट है । शूद्रोंके पूजनसम्बधमें बहुतसी कथाएँ प्रसिद्ध हैं। पुण्यालयकथाकोशमें लिखा है कि 'एक माली (शूद्र) की दो कन्याए, जिनका नाम कुसुमावती और पुष्पवती था, प्रतादन एक एक पुष्प जिनम देरकी देहलीपर चढ़ाया करती थी । एक दिन बनसे पुष्प लाते समय उनको स ने काट खाया
और वे दोनो कन्याएं मरकर, इस पूजनके फलसे, सौधर्मस्वगमें देवी - हुई।' इसी शास्त्रमे एक पशु चरानेवाले नीचकुली ग्यालेका भी कथा लिखी है. जिसने सहस्रकूट चैत्यालयमे जाकर, चुपकेसे नहीं किन्तु राना, सेठ और मुगुनि नामक मुनिराजकी उपस्थिति ( मौजुदगी) में, एक बृहत् कमल श्रीजिनदेवके चरणोमे चढाया, और इस पूजनके प्रभावसे अगले ही जन्ममें महाप्रतापी राजा करकडु हा यह कथा श्रोबाराधनासारकथाकोशमे भी लिखी है । इस प्रथमें ग्यालेकी पजन-विधिका वर्णन इसप्रकार किया है -
तद। गापालक. माऽपि स्थित्वा श्रीर्माजनापत । 'भा' सर्वो-कृष्णा में पद्म ग्रहाणामति' स्फुटम् ॥१४॥ उक्त्वा जिनेंद्रपादाब्जोपरि क्षिप्त्वाशु पकजम । गतो, मुग्धजनानां च भवेत्सत्कर्म शर्मदम् ॥१६॥
-करकडुकथा अर्थात्-जब सुगुप्तिमुनिके द्वारा ग्वालेको यह मालूम हो गया कि सबसे उत्कृष्ट जिनदेव ही हैं तब उस ग्वालेने, श्रीजिनेंद्रदेवके स मुख खडे होकर और यह कहकर कि 'हे सर्वोत्कृष्ट ! मेरे इस कमलको स्वीकार करो'वह कमल श्रीजिनदेवके चरणोपर चढा दिया और इसके पश्चात् वह ग्वाला मदिरसे चला गया। ग्रन्थकार कहते हैं कि मला काम (स कर्म) मूर्ख मनुष्योको भी सुखका देनेवाला होता है। इसी प्रकार शूद्रोंके पूजन सम्बन्धमें और भी बहुतसी कथाऐ हैं। ___ कथानोंको छोडकर जब वर्तमान समयकी ओर देखा जाता है, तब भी यही मालूम होता है कि, आज कल भी बहुतसे स्थानोंपर