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जिन-पूजाधिकार-मीमासा व्यभिचारजात पूजनाधिकारसे वचित रहेगे। भर्तारके जीवित रहनेपर जो सतान जारसे उत्पन्न होती है वह 'कुंड' कहलाती है। मतरिके मरे पीछे जो संतान जारसे उत्पन्न होती है उसको 'गोलक' कहते हैं। अपनी माताके घर रहनेवाली कुंवारी कन्यासे व्यभिचार-द्वारा जो सतान उत्पन्न होती है वह 'कानीन' कही जाती है और जो सतान ऐसी कुवारी कन्याको गर्भ रह जानेके पश्चात् उसका विवाह हो जानेपर उत्पन्न होती है उसको सुहोढ'कहते हैं। इन चारो भेदोमेंसे गोलक और कानीनकी परीक्षा (पहचान) तथा प्राय सहोढकी परीक्षा भी आसानीसे हो सकती है, परन्तु कु डसतानकी परीक्षाका
और खासकर ऐसी कुडमतानकी परीक्षाका कोई साधन नहीं है, जो भर्तारके बारहो महीने निकट रहते हुए अर्थात् परदेशमे न होते हुए उत्पन्न हो । कु डकी माताके सिवा और किसीको यह रहस्य मालूम नही हो सकता। बल्कि कभी कभी तो उसको भी इसमें भ्रम होना सभव है-वह भी ठीक ठीक नहीं कह सकती कि यह संतान जारसे उत्पन्न हुई या असली भरिसे। व्यभिचारजातको पूजनाऽधिकारसे वचित करने पर कु डसतान भी पूजन नही कर सकती, और कु ड-सतानकी परीक्षा न हो सकनेसे सदिग्धावस्था उत्पन्न होती है। सदिग्धाऽवस्थामे किसीको भी पूजन करनेका अधिकार नहीं होसकता; इससे पूजन करनेका ही प्रभाव सिद्ध हो जायगा, यह बड़ी भारी हानि होगी । अत कोई व्यभिचारजात पूजनाऽधिकारसे वचित नही होसकता । दूसरे, जब पापीसे पापी मनुष्य भी नित्यपूजन कर सकते हैं तो फिर कोरे व्यभिचारजातकी तो बात ही क्या हो सकती है ? वे अवश्य पूजन कर सकते है। __ वास्तवमे, यदि विचार किया जाय तो, जैनमतके पूजनसिद्धान्त और नित्यपूजनके स्वरूपाऽनुसार, कोई भी मनुष्य नित्यपूजनके अधिकारसे वचित नहीं रह सकता। जिन लोगोने परमात्माको रागी, द्वेषी माना है--पूजन और भजनसे परमात्मा प्रसन्न होता है, ऐसा जिन