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जिन-पूजाधिकार मीमासा
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क्षेत्र, काल" और भाव', ऐसे छह प्रकारका पूजन भी वर्णित है।
है । उन जिनेन्द्रादिके शरीरो तथा द्रव्य तक पूजनको 'अ चित्त द्रव्य पूजन कहते हैं और दोनो के एक साथ पूजन करनेको 'मिश्रद्रव्यपूजन' कहते हैं । द्रव्यपूजनके आगमद्रव्य और नोश्रागमद्रव्य आदिके भेदसे और भी अनेक भेद है ।
४ जिराज रागमणि क्खवणगाण पत्ति मोक्यमपत्ती |
रिसिही मुखेत्त पूजा पुव्वविहारणेण कायव्वा ॥ वसुनदिश्रा अर्थात् -- जिन क्षेत्रोमे जिनेन्द्र भगवानव जन्म-तप-ज्ञान- निर्वारण कल्याणक हुए हैं, उन क्षेत्रोमे जलचदनादिकसे पूजन करनेको 'क्षेत्रपूजन' कहते है ।
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गर्भादिपचकल्याण मर्हता यद्दिनेऽभवत् । तथा नन्दीश्वरे रत्नत्रय पर्व रिण चाऽर्श्वनम् ॥ स्नपन क्रियते नाना रसैरिक्षुघृतादिभि ।
तत्र गीतादिमाङ्गल्य कालपूजा भवेदियम् ॥ घर्मस ग्रहश्रा ० अर्थात् - जिन तिथियोमे अरहतो के गर्भ जन्मादिक कल्याणक हुए है, उनमे तथा नन्दीश्वर और रत्नत्रयादिक पर्वोमे जिनन्द्र देवका पूजन, इक्षुरस और दुग्ध - घृतादिक से अभिषेक तथा गीत, नृत्य और जागरणादि मागलिक कार्य करनेको 'कालपूजन' कहते हैं ।
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यदन तचतुष्काद्य विषाय गुणकीर्त्तनम् । त्रिकाल क्रियते देववन्दना भावपूजनम् ॥ परमेष्ठिपदैर्जाप क्रियते यत्स्वशक्तित ।
बार्हद्गुण स्तोत्र साप्यच भावपूर्विका ॥ पिस्थ च पदस्थ च रूपस्थ रूपवजितम् ।
ध्यायते यत्र तद्विद्धि भावार्चनमनुत्तरम् ॥ धर्म स ग्रहश्रा० अर्थात् --- जिनेन्द्र के अनन्त-दर्शन, मनन्त - ज्ञान, अनन्त सुख और अनन्तवीर्यादि गुणोकी भक्तिपूर्वक स्तुति करके जो त्रिकाल देववन्दान