________________
३३
.
हमारी यह दुर्दशा क्यों उम्र हाथ मल मलकर पछताते हैं, इसलिये माता-पिताकी इस विषयमे बालको पर कड़ी दृष्टि रहनी चाहिये और उनको किसी न किसी प्रकारसे ऐसी शिक्षा देनेका प्रयत्न करना चाहिये जिससे बालक इस प्रकारको खोटी प्रवृतियोमें पड़ने न पाये । अधिकांश माता-पिता इस
ओर बिल्कुल भी ध्यान नही देते और उनकी यह उपेक्षा विचारे हिताऽहित-ज्ञान-शून्य बालकोके लिये विषका काम देती है, जिसका पाप-भार माता पितामोंकी गर्दन पर होता है । अतः माता-पितामोको इस विषयमे बहुत सावधान रहना चाहिये और छोटी अवस्थामे तो बच्चोका विवाह भूल कर भी नहीं करना चाहिये, बल्कि उनको कमसे कम २० वर्षकी अवस्था तक ब्रह्मचर्याश्रममे रखना चाहिये,
और यही काल उनके विद्याध्ययनका होना चाहिये। इसके पश्चातू यह उनकी इच्छा रही कि वे चाहे और विद्याध्ययन करे या विवाह कराकर गृहस्थाश्रम स्वीकार करे।
चौथा कारण सबमे प्रधान है, अच्छी खुराकका न मिलना निर्बलताको उत्तरोत्तर वृद्धिंगत करनेवाला है। जब अच्छी खुराक अथवा उत्तम भोज्य पदार्थोकी प्राप्ति ही नहीं होगी तो केवल स्वास्थ्य-रक्षाके नियमोंके जाननेसे ही क्या लाभ हो सकता है ? वैद्यक-शास्त्र हमें किसी वस्तुकी उपयोगिता-अनुपयोगिताको बतलाना है, परतु किसी उपयोगी पदार्थकी प्राप्ति करा देना उसका काम नहीं । यह हमारा काम है कि हम उसका प्रबन्ध करे। इसलिये स्वास्थ्यरक्षाके नियम भी उस वक्त तक पूरी तौरसे नहीं पल सकते जबतक कि हमारे लिए अच्छी खुराक मिलने का प्रबन्ध न होवे । वास्तवमें यदि विचार किया जाय तो मनुष्यके शरीरका सारा खेल उसके भोजन पर निर्भर है। अच्छे और श्रेष्ठ भोजनसे मनुष्यका लरीर सुन्दर, निरोगी एवं बलाढ्य बनता है और मनुष्य के हृदय में उत्तम विचारोंकी सृष्टि होती है। विपरीत इसके, बुरे अथवा निकृष्ट भोजनसे मनुष्यका शरीर