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प्रथम परिच्छेद
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अब पूर्वोक्त तीनों तत्त्वों में से प्रथम देवतत्त्व का स्वरूप लिखते हैं: - देव नाम परमेश्वर का है। सो परमेश्वर के स्वरूप में अनेक प्रकार के विकल्प मतान्तरीय पुरुष करते हैं, सो जैनमत में परमेश्वर का क्या स्वरूप माया है, तिस परमेश्वर का स्वरूप, नाम, रूप और विशेषण संयुक्त लिखते हैं । जैनमत में जो परमेश्वर मान्या है, सो वारह गुण संयुक्त और अष्टादश दूषण रहित अर्हन्त परमेश्वर हैं और जो परमेश्वर उक्त बारह गुण रहित तथा अष्टादश दूपण सहित होगा तिस में कदापि परमेश्वरता सिद्ध नहीं होगी । यह कथन आगे चलकर लिखेंगे ।
अब: प्रथम चारह गुण लिखते हैं अशोकवृक्षादि अट महाप्रातिहार्य (सर्व जैन लोगो में देव-अरिहंत के प्रसिद्ध है ) तथा चार मूलातिशय एवं सर्व
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बारह गुण
चारह गुण हैं तिस में चार मूलातिशय कानाम कहते हैं - १. ज्ञानातिशय २. । चागतिशय
३. अपायापगमातिशय ४. पूजातिशय । तत्र प्रथम ज्ञानातिशय
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अशोक
मुरपुपवृष्टिर्दिव्यध्वनिश्चामरमासनञ्च ।
भामंण्डल दुन्दुभिरातपत्रं सन्मातिहार्याणि जिनेश्वराणाम् ॥
अर्थ - १. अशोकवृक्ष, २. देवों द्वारा फूलो की वर्षा, ३. दिव्य
ध्वनि, ४ चामर, ५. सिंहासन ६ भामण्डल, ७, दुन्दुभि ८.छत्र
यह जिनेश्वर के आठ प्रातिहार्य हैं । -
+ प्रातिहार्य शब्द की व्युत्पत्तिः
'प्रतिहाग इन्द्रवचनानुसारियो देवास्तैः कृतानि प्रातिहार्याणि 'इन्द्र