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थाय छे. जेमके माटी थी मिश्रित सोना ने तेवा प्रकार नी सामग्री अने तेवा प्रकारनी तपावणी द्वारा सोनु अने माटी अलग थाय छे तेम ससारी श्रात्मा पण अनादि काल थी आत्मा साथे थयेला कर्मो ना... सम्बन्ध नो मनुष्य भव, प्रार्य क्षेत्र, उत्तम कुल, सद् गुरू नो योग ने धर्म श्रवण आदि सामग्री द्वारा सम्यग्दर्शन, सम्यग् ज्ञान, सम्यग् चारित्र अने सम्यग् तप द्वारा जैनशासन नी सुन्दरप्राराधना करी नाश करी शके छे अर्थात् अनादि काल नो आत्मा साथे नो सम्बन्ध तोड़ी शके छे
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॥ अथ द्वितीयोऽधिकारः ॥
जीवो नु शुभाशुभ कर्मों नु ग्रहण
मूलम्-
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तादृकस्वाभावान्नियतेर्भविष्यत्कालाच्छु नाशोभनभुषित हेतोः । जीवस्तुकरण समाददीत, शुभाशुभानीह पुरः स्थितानि ।।१
गाथार्थ - तेवा प्रकार नो स्वभाव तेवा प्रकार
नी नियति, तेवा प्रकार नो काल अने तेवा प्रकार ना सुख दुःख ना भोगना कारण थी जीव मागल रहेला शुभाशुभ कर्मो ग्रहण करे छे.
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