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भगवतीचे
ईशानेन्द्रस्य सत्मार्थनया क्षमाकरणेन तेजो छेश्याया अनलहप्टे' सहरणम्, ईशा नेन्द्रस्य पुः सिद्धिमुक्तिस्थलादिमतिपादनम्, उत्तरार्ध-दक्षिणार्ध देवेन्द्राणां परस्परसमिनाला सकार्यक्रम पतिपादनम् शक्रेशानयोः परस्परविवादे सनत्कु मारस्मरणं तद्द्वारा विवाद निर्णय, अन्ते सनत्कुमारस्य भव्यत्वमतिपादनम् ।
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मूलम् गाहा-रिसी विकुवणा धमर - किरियजाणि-त्थि नगरपालाय । अहिव इदिय परिसा, तइयम्मि सए दस उद्देसा ।
छाया - कीदृशी विकुर्वेणा चमर क्रिया यान स्त्री नगरपालाम । अधिपति इन्द्रिय पर्षद वृतीये शते दश उद्देशाः ॥
टीका-तत्र प्रथमे उद्देशके ' केरिसी विउज्वण "त्ति पीदृशी चमरेन्द्रस्य विकुर्वणा - विविधरूपकरणरूपा शक्ति ? इत्यादि प्रश्नोत्तर वर्तते १ । द्वितीये पचिराजधानी के निवासी देवों द्वारा ईशानेन्द्र से क्षमा मागना, इसके बाद उनकी क्षमा प्रार्थना के कारण ईशानेन्द्रको तेजोलेश्या का सहरण करना, ईशानेन्द्र की आयुका प्रतिपादन, उनकी सिद्धि, मुक्तिस्थल आदिका - प्रतिपादन, उत्तरार्ध - दक्षिणार्थ- देवेन्द्रोंका परस्पर मिलना पाठवीत सहकार्यक्रम का कथन, शक्र और ईशान में परस्पर में विवाद होना, सनत्कुमार का स्मरण, सनस्कुमार द्वारा विवाद का निर्णय, अन्त में सनत्कुमार की भव्यता का प्रतिपादन ।
"रिसी विणा " अमर किरिय- इत्यादि गाथा
इस तृतीयशतक में दश १० उद्देशक हैं, इनमेंसे प्रथम उद्देशक में "फेरिसी विषणा", षमरेन्द्र की विविध रूप करने की शक्तिरूप क्षमायाचना, क्षमायाचनाना स्वीक्षर हरीने थानेन्द्र चोवानी तेलेबेश्या पाछी भेथी લે છે. પંચાનેન્દ્રના આયુષ્યનું પ્રતિપાદન, તેમની સિદ્ધિ, મુક્તિમ્મદ ખાતિનું પ્રતિપાદન ઉત્તરા અને દક્ષિણાના દેવેન્દ્રના પરસ્પરના મિલનનું તથા માતચીત અને સહકારક્રમનું થન, શુક્ર અને ઈશાનેન્દ્ર વચ્ચે વાદવિવા, સનત્યુમારનું સ્મરણ, સનકુમાર દ્રાસ તેમના વિવાદનું નિરાકરણુ, છેવટે સનત્કુમારની ભવ્યતાનું પ્રતિપાદન,
" केरिसी विउच्यणा" इत्याह गाथा
শাগী शतধन। Aে शৈ४ मे तेमाना पडेद्या अम्मां "केरिसी विम्वमा" ચમરનની વિકણા (વિવિધરૂપ ધારણ કરવાની શક્તિ)નું વઘુન કર્યું છે ૧. બીજી