________________
और सब मिलकर तीन सौ चौसठ श्रेणीबद्ध विल हैं। पांचवे प्रस्तार के उद्भ्रान्त नामक इन्द्रक विल को चार दिशाओं में एक सौ अस्सी विदिशात्रों में एक सौ छियत्तर और सब मिलाकर तीन सौ छप्पन श्रेणी बद्ध दिल हैं। छठवें प्रस्तार के संभ्रान्त नामक इन्द्रक विल की चार दिशाओं में एक सौ छियत्तर विदिशामों में एक सौ बहत्तर और सब मिलाकर तीन सौ अड़तालीस थेणी बद्ध बिल हैं । सातवें प्रस्तार के असंभ्रान्त नामक विल की चारों दिशाओं में एक सौ बहत्तर विदिशामों में एक सौ अउसठ और सब मिलाकर तीन सौ चालीस श्रेणी बद्ध बिल हैं। पाठवें प्रस्तार के विभ्रान्त नामक इन्द्रक विल की चार दिशाओं में एक सौ अडसठ विदिशाओं में एक सौ चौसठ और सब मिलाकर तीन सौ बत्तीस श्रेणी वद्ध विल है। नौवे प्रस्तार के त्रस्त नामक इन्द्रक बिल की चार दिशाओं में एक सौ चौसठ, बिदिशाओं में एक सौ साठ और सब मिलाकर तीन सौ चौबीस श्रेणी वद्ध बिल हैं। दसवें प्रस्तार के त्रसित नामक इन्द्रक विल की चार दिशाओं में एक सौ साठ, विदिशाओं में एक सौ छप्पन और सब मिलाकर तीन सौ सोलह श्रेणी बद्ध विल हैं। ग्यारहवें प्रस्तार के वक्रान्त नामक इन्द्रक विल की चार दिशाओं में एक सौ छप्पन, विदिशाओं में एक सौ बावन, और सब मिलाकर तीन सौ पाठ श्रेणीबद्ध बिल हैं।
बारहवें प्रस्तार के अवक्रान्त नामक इन्द्रक विल की चार दिशाओं में एक सौ बावन, विदिशाओं में एक सौ अड़तालीस सौर सब मिलाकर तीन सौ श्रेणी बद्ध बिल हैं। और तेरहवें प्रस्तार के बिक्रान्त नामक इन्द्रक विल को चारों दिशाओं में एक सौ अडतालीस विदिशाओं में एक सौ चौवालीस और सब मिलाकर दो सौ बानवें श्रेणीबद्ध विल हैं। इस प्रकार तेरहों प्रस्तारों के समस्त श्रेणी बद्ध बिल चार हजार चार सौ बीस इन्द्रक बिल तेरह और श्रेणीबद्ध तथा इन्द्रक दोनों मिलाकर चार हजार चार सौ तेतीस विल हैं । इनके सिवाय उनतीस लाख पचानवे हजार पांच सौ सड़सठ प्रकीर्णक दिल हैं । इस प्रकार सब मिलाकर प्रथमपृथ्वी में तीस लाख विल हैं।
द्वितीय पृथ्वी के प्रथम प्रस्तार के स्तरक नामक इन्द्रक विल की चारों दिशाओं में एक सौ चौवालीस, विदिशामों में एक सौ चालीस और सब मिलाकर दो सौ चौरासी श्रेणी बद्ध बिल हैं। द्वितीय प्रस्तार के स्तनक नामक इन्द्रक विल की चारों दिशाओं में एक सौ चालीस विदिशाओं में एक सौ छत्तीस और सब मिलाकर दो सौ छियत्तर थेणी बद्ध बिल हैं। तृतीय प्रस्तार के मनक नामक इन्द्रक विल की चारों दिशामों में एक सौ छत्तीस विदिशाओं में एक सौ बत्तीस और सब मिलाकर दो सौ पडसठ श्रेणी बद्ध विल हैं। चतुर्थ प्रस्तार के वनक नामक इन्द्रक विल की चारों दिशाओं में एक सौ बत्तीस, विदिशाओं में एक सौ अद्राईस और सब मिलाकर दो सौ साठ श्रेणी बद्ध बिल हैं। पंचम प्रस्तार के घाट नाकक इन्द्रक बिल की चारों दिशायों में एक सौ अठाईस, विदिशामों में एक सौ चौवीस और सब मिलाकर दो सौ बाबन विल श्रेणी बद्ध हैं । षष्ट प्रस्तार के संघाट नामक इन्द्रक बिल की चारों दिशाओं में एक सी चौवीस, बिदिशाओं में एक सौ वीस और सब मिलाकर दो सौ चौवालीस श्रेणी बद्ध विल है। सप्तम प्रस्तार के जितनामक इन्द्रक की चारों दिशाओं में एक सौ बीस, विदिशामों में एक सौ सोलह और सब मिलाकर दो सौ छत्तीस श्रेणी वद्ध विल हैं । अष्टम प्रस्तार के जिह्व नामक इन्द्रक की चारों दिशाओं में एक सौ सोलह विदिशामों में एक सौ बारह और सब मिलाकर दो सौ अट्ठाईस श्रेणी बद्ध विल हैं। नवम प्रस्तार के लोल
ब्रह्म स्वर्ग के समीप पूर्व-पश्चिम भाग में एक और दो राजु प्रवेश करने पर क्रम से नीचे ऊपर चार और दो से भाजित जगणी प्रमाण स्तंभा की ऊंचाई है।
स्तम्भोत्रोध-१रा. के प्रदेश में रा. २ रा. के प्रदेश में रा.
छप्पन से भाजित लोक को दो जगह रखकर उसे क्रम से एक और तीन से गुणा करने पर उपयुक्त अभ्यन्तर क्षत्रों का घनफल निकलता है।
३४३:५६४१:23; ३४३५६४३=१५६ ५. फ.
इस घनफल को मिलाकर और उसको चार से मुणाकर उसमें मध्य क्षेत्र के घनफल को मिला देने पर पूर्ण ऊर्ध लोक का पनफल होता है । वह घनफल तीन से गुरिणत और सात से भाजित लोक के प्रमाण है।
६५