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आराधना और उसकी टीकायें
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तो समन्तभद्रके शिष्य थे, न जिनदीक्षा लेनेके पहले वे शैव राजा थे और न उनका बनाया हुआ आराधनाके अतिरिक्त कोई दूसरा ग्रन्थ ही उपलब्ध है। रत्नमाला और तत्त्वार्थटीकाके कर्ता कोई दूसरे शिवकोटि थे ।
गुरु-परम्परा और सम्प्रदाय दिगम्बर सम्प्रदायकी पट्टावलियों, शिलालिपियों और श्रुतावतार, हरिवंशपुराण आदि ग्रन्थों में जो गुरुपरम्परायें मिलती हैं उनमेंसे किसी परम्परामें जिननन्दि, सर्वगुप्त और मित्रनन्दिके नाम नहीं मिलते । परन्तु इनमेंसे सर्वगुप्तका उल्लेख. यापनीय संघके आचार्य शाकटायनने अपने व्याकरणमें किया है-' उपसर्वगुप्तं व्याख्यातारः' (१-३-१०४ ) अर्थात् सारे व्याख्याता सर्वगुप्तसे नीचे हैंउनके जैसा कोई दूसरा व्याख्याता नहीं। शायद इन्हीं सर्वगुप्तके चरणों के निकट बैठकर शिवार्यने सूत्र और उनका अर्थ अच्छी तरह आयत्त करके आराधनाकी रचना की थी। शाकटायनके उक्त उल्लेखसे हमारा अनुमान है कि शिवार्य या शिवकोटि यापनीय संघके ही आचार्य हैं और इसीलिए दिगम्बर गुरुपरम्परामें उनके गुरुओंका कोई उल्लेख नहीं मिलता।
इस अनुमानकी पुष्टि और भी कई प्रमाणोंसे होती है जिन्हें हमने विस्तारके साथ अन्यत्र लिखा है। यहाँ संक्षेपमें उनमेंसे थोड़ी सी बातें दी जाती हैं
१ भगवती आराधनाकी उपलब्ध टीकाओंमें सबसे पुरानी टीका अपराजितसूरिकी है और जैसा कि आगे बतलाया जायगा वे निश्चयसे यापनीय संघके हैं । ऐसी दशामें मूल ग्रन्थकर्ता शिवार्यके भी यापनीय होने की अधिक संभावना है।
२ यापनीय संघ श्वेताम्बरोंके समान सूत्र-ग्रन्थोंको (श्वेताम्बर आगमोंको) मानता है और आराधनामें सैकड़ों गाथायें ऐसी हैं जो सूत्र-ग्रन्थों में मिलती हैं । ___३ दस स्थितिकल्पोंके नामोंवाली गाथा जीतकल्पभाष्य और अनेक श्वेताम्बर टीकाओं तथा नियुक्तियोंमें मिलती है। आचार्य प्रभाचन्द्रने अपने प्रमेयकमलमार्तण्डमें भी. इसे श्वेताम्बर गाथा मानी है।
४ आराधनाकी ६६५-६६६ नं० की गाथायें दिगम्बरोंके मुनियों के आचारसे मेल नहीं खातीं। उनमें बीमार मुनिके लिए चार मुनियों के द्वारा
१ देखी ' यापनीय साहित्यकी खोज ' शीर्षक लेख और अनन्तकीतिमालामें प्रकाशित भगवती आराधनाकी भूमिका ।