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संयत अध्ययन
दो होज्जमाणे- दो 9. आभिणिबोहियणाणेसु २. सुयणाणेसु होज्जा,
तिसु होज्जमाणे- तिसु १. आभिणिबोहियणाण २. सुयणाण ३. ओहिणाणेसु होज्जा,
अहवा-तिसु १. आभिणिबोहियणाण २. सुयणाण ३. मणपज्जवणाणेसु होज्जा,
चउसु होज्जमाणे- चउसु १.
आभिणिबोहियणाण
२. सुवणाण ३. ओहिणाण ४. मणपजवणाणेसु होज्जा, एवं निपठे वि
प. सिणाए णं भंते! कइसु णाणेसु होज्जा ?
उ. गोयमा ! एगम्मि केवलणाणे होज्जा,
प. पुलाए णं भंते! केवइयं सुयं अहिज्जेज्जा ?
उ. गोयमा ! जहन्नेणं नवमस्स पुव्वस्स तइयं आयारवत्युं;
उक्कोसेणं नवपुव्याई अहिज्जेज्जा,
प. बउसे णं भंते! केवइयं सुयं अहिज्जेज्जा ? उ. गोयमा ! जहन्त्रेण अट्ठपवयणमायाओ, उक्कोसेण दसव्वाई अहिज्जेज्जा । एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
प. कसायकुसीले णं भंते! केवइयं सुयं अहिज्जेज्जा ?
उ. गोयमा ! जहन्त्रेणं अट्ठपवयणमायाओ,
उक्कोसेणं चोद्दसपुयाई अहिज्जेज्जा । एवं नियंठे वि
प. सिणाए णं भंते! केवइयं सूर्य अहिज्जेज्जा ?
उ. गोयमा ! सुयवइरित्ते होज्जा ।
८. तित्थ दारं
प. पुलाए णं भंते! किं तित्थे होज्जा, अतित्थे होज्जा ?
उ. गोयमा ! तित्थे होज्जा, नो अतित्थे होज्जा,
बउसे पडिसेवणाकुसीले वि एवं चेय
प. कसायकुसीले णं भन्ते किं तित्वे होज्जा, अतित्थे होज्जा ?
उ. गोयमा ! तित्थे वा होज्जा, अतित्थे वा होज्जा,
प. जइ अतित्थे होज्जा, कि तिथयरे होज्जा, पत्तेयबुद्धे होज्जा ?
उ. गोयमा ! तित्थयरे वा होज्जा, पत्तेयबुद्धे वा होज्जा, नियंठे सिणाए वि एवं चेव ।
९. लिंग-दार
प. पुलाए णं भंते ! किं सलिंगे होज्जा, अन्नलिंगे होज्जा, गिहिलिंगे होज्जा ?
उ. गोयमा ! दव्वलिंगं पडुच्च सलिंगे वा होज्जा, अन्नलिंगे वा होज्जा, गिहिलिंगे वा होज्जा,
भावलिंग पहुच्च नियम सलिंगे होज्जा, एवं जाय सिणाए ।
प्र.
उ.
प्र.
उ.
प्र.
उ.
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दो हों तो- १. आभिनिबोधिक ज्ञान और
२. श्रुत ज्ञान होता है।
तीन हो तो -१ आभिनिवोधिक ज्ञान २ श्रुत-ज्ञान और
३. अवधि ज्ञान होता है।
प्र.
उ. गौतम ! एक केवल ज्ञान होता है।
प्र. भन्ते ! पुलाक के कितने श्रुत का अध्ययन होता है ?
उ. गौतम ! जघन्य - नवम पूर्व की तीसरी आचार वस्तु पर्यन्त का अध्ययन होता है,
अथवा १. आभिनिबोधिक ज्ञान, २. श्रुत-ज्ञान और
३. मनः पर्यव ज्ञान होता है।
चार हों तो - १. आभिनिबोधिक ज्ञान, २. ३. अवधि- ज्ञान, और ४. मनः पर्यव-ज्ञान होता है।
निर्ग्रन्थ का कथन भी इसी प्रकार है।
भन्ते ! स्नातक को कितने ज्ञान होते हैं ?
उ.
प्र.
श्रुत-ज्ञान,
उत्कृष्ट नौ पूर्व का अध्ययन होता है।
भंते ! बकुश कितने श्रुत का अध्ययन करता है ?
गौतम ! जघन्य-आठ प्रवचन माता का अध्ययन करता है, उत्कृष्ट-दस पूर्व का अध्ययन करता है।
प्रतिसेवनाकुशील का कथन भी इसी प्रकार है।
भन्ते ! कषाय कुशील कितने श्रुत का अध्ययन करता है ? गौतम ! जघन्य - आठ प्रवचन माता का अध्ययन करता है,
उत्कृष्ट - चौदह पूर्व का अध्ययन करता है।
निर्ग्रन्थ का कथन भी इसी प्रकार है।
भन्ते ! स्नातक कितने श्रुत का अध्ययन करता है ?
गौतम ! श्रुत व्यतिरिक्त होता है अर्थात् उसके श्रुत ज्ञान नहीं होता है।
तीर्थ-द्वार
८.
भन्ते ! पुलाक क्या तीर्थ में होता है या अतीर्थ में होता है ? उ. गौतम तीर्थ में होता है. अतीर्थ में नहीं होता है।
प्र.
बकुश और प्रतिसेवनाकुशील का कथन भी इसी प्रकार है।
प्र. भन्ते ! कषाय कुशील क्या तीर्थ में होता है या अतीर्थ में होता है ?
गौतम तीर्थ में भी होता है और अतीर्थ में भी होता है।
यदि अतीर्थ में होता है तो क्या तीर्थंकर होता है या प्रत्येकबुद्ध होता है?
उ. गौतम तीर्थंकर भी होता है और प्रत्येकबुद्ध भी होता है। निर्ग्रन्थ और स्नातक का कथन भी इसी प्रकार है। ९. लिंग-द्वार
प्र. भन्ते ! पुलाक क्या स्व-लिंग में होता है, अन्य-लिंग में होता है। या गृहस्थ- लिंग में होता है ?
उ. गौतम ! द्रव्य - लिंग की अपेक्षा स्व-लिंग में भी होता है, अन्य-लिंग में भी होता है और गृही लिंग में भी होता है।
भाव लिंग की अपेक्षा निश्चित रूप से स्वलिंग में ही होता है। इसी प्रकार स्नातक पर्यन्त जानना चाहिए।