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प. नियंठे णं भंते ! किं सामाइयसंजमे होज्जा जाव
अहक्वायसंजमे होज्जा? उ. गोयमा ! नो सामाइयसंजमे होज्जा जाव नो सुहम
संपरायसंजमे होज्जा,अहक्खायसंजमे होज्जा।
एवं सिणाए वि। ६. पडिसेवणा-दारंप. पुलाए णं भंते ! किं पडिसेवए होज्जा, अपडिसेवए
होज्जा? उ. गोयमा ! पडिसेवए होज्जा, नो अपडिसेवए होज्जा। प. जइ पडिसेवए होज्जा, किं मूलगुणपडिसेवए होज्जा,
उत्तरगुणपडिसेवए होज्जा? उ. गोयमा ! मूलगुणपडिसेवए वा होज्जा, उत्तरगुणपडिसेवए
वा होज्जा। मूलगुण-पडिसेवमाणे-पंचण्हं आसवाणं अण्णयर पडिसेवेज्जा, उत्तरगुण-पडिसेवमाणे-दसविहस्स पच्चक्खाणस्स
अण्णयरं पडिसेवेज्जा। प. बउसे णं भंते ! किं पडिसेवए होज्जा, अपडिसेवए
होज्जा? उ. गोयमा ! पडिसेवए होज्जा, नो अपडिसेवए होज्जा। प. जइ पडिसेवए होज्जा, किं मूलगुण-पडिसेवए होज्जा,
उत्तरगुण-पडिसेवए होज्जा? उ. गोयमा ! नो मूलगुण-पडिसेवए होज्जा,
उत्तरगुण-पडिसेवए होज्जा, उत्तरगुण-पडिसेवमाणे-दसविहस्स पच्चक्खाणस्स अण्णयरंपडिसेवेज्जा।
पडिसेवणाकुसीले जहा पुलाए। प. कसायकुसीले णं भंते ! पडिसेवए होज्जा, अपडिसेवए
होज्जा? उ. गोयमा ! नो पडिसेवए होज्जा, अपडिसेवए होज्जा,
एवं नियंठे वि।
सिणाए वि एवं चेव। ७. णाण-दारंप. पुलाए णं भंते ! कइसु णाणेसु होज्जा? उ. गोयमा ! दोसुवा, तिसु वा होज्जा,
दोसु होज्जमाणे-दोसु १. आभिणिबोहियणाण, २.सुयणाणेसु होज्जा, तिसु होज्जमाणे तिसु १. आभिणिबोहियणाण, २.सुयणाण,३.ओहिणाणेसु होज्जा।
बउसे पडिसेवणाकुसीले विएवं चेव। प. कसायकुसीले णं भंते ! कइसुणाणेसु होज्जा? उ. गोयमा ! दोसुवा, तिसुवा, चउसु वा होज्जा,
_ द्रव्यानुयोग-(२) प्र. भन्ते ! निर्ग्रन्थ क्या सामायिक संयमवाला होता है यावत्
यथाख्यात संयमवाला होता है? उ. गौतम ! सामायिक संयमवाला भी नहीं होता है यावत् सूक्ष्म
सम्पराय संयमवाला भी नहीं होता है। यथाख्यात संयमवाला होता है।
स्नातक का कथन की इसी प्रकार है। ६. प्रतिसेवना द्वारप्र. भन्ते ! पुलाक क्या प्रतिसेवक होता है या अप्रतिसेवक
होता है? उ. गौतम ! प्रतिसेवक होता है, अप्रतिसेवक नहीं होता है। प्र. यदि प्रतिसेवक होता है तो क्या मूलगुण प्रतिसेवक होता है या
उत्तरगुण प्रतिसेवक होता है? उ. गौतम ! मूलगुण प्रतिसेवक भी होता है और उत्तरगुण
प्रतिसेवक भी होता है। मूलगुण में प्रतिसेवना (दोष-सेवन) करता हुआ पांच आम्नवों में से किसी एक आसव का सेवन करता है। उत्तरगुणों में प्रतिसेवना (दोष सेवन) करता हुआ दस प्रकार
के प्रत्याख्यानों में से किसी एक प्रत्याख्यान में दोष लगाता है। प्र. भन्ते ! बकुश क्या प्रतिसेवक होता है या अप्रतिसेवक
होता है? उ. गौतम ! प्रतिसेवक होता है, अप्रतिसेवक नहीं होता है। प्र. यदि प्रतिसेवक होता है तो क्या मूलगुण प्रतिसेवक होता है या
उत्तरगुण प्रतिसेवक होता है? उ. गौतम ! मूलगुण प्रतिसेवक नहीं होता है, उत्तरगुण प्रतिसेवक
होता है। उत्तरगुणों में प्रतिसेवना (दोषों का सेवन) करता हुआ दस प्रत्याख्यानों में से किसी एक प्रत्याख्यान में दोष लगाता है।
प्रतिसेवनाकुशील का कथन पुलाक के समान जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! कषायकुशील क्या प्रतिसेवक होता है या अप्रतिसेवक
होता है? उ. गौतम ! प्रतिसेवक नहीं होता है, अप्रतिसेवक होता है।
इसी प्रकार निर्ग्रन्थ का कथन जानना चाहिए।
स्नातक का कथन भी इसी प्रकार है। ७. ज्ञान-द्वारप्र. भन्ते ! पुलाक को कितने ज्ञान होते हैं? उ. गौतम ! दो या तीन ज्ञान होते हैं।
दो हो तो-१. आभिनिबोधिक-ज्ञान और २. श्रुत-ज्ञान होता
तीन हो तो-१. आभिनिबोधिक-ज्ञान, २. श्रुत-ज्ञान और ३. अवधि ज्ञान होता है।
बकुश और प्रतिसेवनाकुशील का कथन भी इसी प्रकार है। प्र. भन्ते ! कषायकुशील के कितने ज्ञान होते हैं ? उ. गौतम ! दो, तीन या चार होते हैं।