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भगवतीसूत्र - श. १ उ. १ नारकों के भेद चयादि सूत्र
गलों का कथन करना चाहिये ।
गाथा का शब्दार्थ - भेदिय - भिदे, चिया-चय को प्राप्त हुए, उबचिया- उपचय को प्राप्त हुए, उदीरिया - उदीरणा को प्राप्त हुए, वेइया-वेदे गये, य-और, णिज्जिण्णा - निर्जीर्ण हुए | उब्वण - उद्वर्तन अपवर्तन, संकामण-संक्रमण, निहत्तण निघत्तन और, णिकायणेनिकाचन, इन चार पदों में, तिविहकालो-भूत, भविष्य और वर्त्तमान ये तीनों का कहने चाहिए ।
भावार्थ- ८ प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक जीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्गल भेदे जाते हैं ?
उत्तर - हे गौतम ! कर्म द्रव्य वर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गल भेदे जाते हैं । वे इस प्रकार हैं-अणु और बादर ।
९ प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक जीव कितने प्रकार के पुद्गलों का चय करते हैं ?
९ उत्तर - हे गौतम! आहार द्रव्य वर्गणा की अपेक्षा से दो प्रकार के पुद्गलों का चय करते हैं । वे इस प्रकार हैं- अणु और बादर । इसी तरह से दो प्रकार के पुद्गलों का उपचय भी करते हैं ?
१० प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक जीव कितने प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ?
१० उत्तर - हे गौतम ! कर्म-द्रव्य-वर्गणा की अपेक्षा से दो प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा करते हैं। वे इस प्रकार हैं- अणु और बादर ।
शेष पद भी इसी प्रकार कहने चाहिए - वेदते हैं और निर्जरा करते हैं । उद्वर्तना अपवर्तना की, उद्वर्तना अपवर्तना करते हैं, उद्वर्तना अपवर्तना करेंगे । संक्रमण किया, संक्रमण करते हैं, संक्रमण करेंगे । निधत्त किया, निधत्त करते हैं, निधत्त करेंगे। निकाचित किया, निकाचित करते हैं, निकाचित करेंगे । इन सब पदों में भी कर्म- द्रव्य-वर्गणा की अपेक्षा से अणु और बादर पुद्गलों का कथन करना चाहिए ।
गाथा का भावार्थ इस प्रकार है-भिदे, चय को प्राप्त हुए, उपचय को
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