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भगवती सूत्र-श. १ उ. ७ गर्भस्थ जीव की नरकादि गति
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उववज्जेजा ?
२५६ उत्तर-गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेजा, अत्थेगइए नो उववज्जेजा।
२५७ प्रश्न-से केणटेणं ?
२५७ उत्तर-गोयमा ! से णं सण्णी पंचिंदिए सव्वाहिं पजत्तीहिं पज्जत्तए तहारूवस्स समणस्स वा, माहणस्स वा अंतिए एगमपि
आरियं धम्मियं सुवयणं सोचा, निसम्म तओ भवइ संवेगजायसड्ढे, तिव्वधम्माणुरागरत्ते, से गंजीवे धम्मकामए, पुण्णकामए सग्गकामए, मोक्खकामए; धम्मकंखिए, पुण्णकंखिए, सग्गकंखिए, मोक्खकंखिए; धम्मपिवासए पुण्णपिवासए, सग्ग-मोक्खपिवासए; तच्चित्ते, तम्मणे, तल्लेसे, तदज्झवसिए, तत्तिव्वज्झवसाणे, तदट्ठोवउत्ते, तदप्पियकरणे, तब्भावणाभाविए एयंसि णं अंतरंसि कालं करेज देवलोगेसु उववजइ । से तेणटेणं गोयमा !.....।
_ विशेष शब्दों के अर्थ-वीरियलद्धीए-वीर्य लब्धि के द्वारा, वेउम्वियलद्धीए-वैक्रिय लब्धि के द्वारा, पराणीयं-परानीक-शत्रु की सेना, णिच्छभइ-आत्मप्रदेशों को बाहर निकालता है, चाउरंगिणि-चतुरंगिनी सेना को, अत्यकामए-अर्थ का कामी-इच्छुक, अत्यकंखिएअर्थ का कांक्षी, अत्यपिवासिए-अर्थ पिपासित, तदज्यवसिए-उसमें अध्यवसाय रखने वाला, तत्तियज्यवसाणे-उसमें तीव्र अध्यवसान-प्रयत्न करने वाला, तबट्ठोवउत्ते-उस अर्थ में उपयुक्त-सावधानता वाला, तदप्पियकरणे-तदपितकरण अर्थात् जिसकी इन्द्रियाँ और कृत. कारित अनुमोदन उसी में लगे हुए हैं वह, अंतरंसि-बीच में,तहारूवस्स समणस्स वा माह
स्स वा-तथा रूप के श्रमण माहण अर्थात् साधु के योग्य वेष और साधु के उचित गुणों को धारण करने वाले साधु का तथा माहन अर्थात् श्रावक का, संवेगजायसडे-संवेग से जिसे
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