Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 519
________________ भगवती सूत्र-श. २ उ. ७ देवों के प्रकार भाषापने गृहीत होते हैं । नियमा छह दिशा के पुद्गल गृहीत होते हैं, वे निरन्तर भी गृहीत होते हैं और सान्तर भी गृहीत होते है । भाषा की स्थिति जघन्य एक समय उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त है । भाषा का अन्तर (व्यवधान) जघन्य अन्तर्मुहूत्तं है, उत्कृष्ट अनन्त काल का है । काय योग से भाषा के पुद्गल गृहीत होते हैं और वचन योग से छोड़े जाते हैं । ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम भाव से एवं मोहनीय कर्म के उदय से वचन योग से असत्य भाषा और मिश्र भाषा बोली जाती है । ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम से वचन के योग से सत्य भाषा और व्यवहार भाषा बोली जाती है । सत्य भाषा बोलने वाले सब से थोड़े हैं । मिश्र भाषा बोलने वाले उनसे असंख्यात गुणा हैं । असत्य भाषा बोलने वाले उनसे असंख्यात गुणा हैं, व्यवहार भाषा बोलने वाले उनसे असंख्यात गुणा है और अभाषक उनसे अनन्तगुणा है, क्योंकि अभाषक जीवों में निम्न लिखित जीवों का समावेश होता है-अपर्याप्त जीव, सिद्ध भगवान्, शंलेशी-प्रतिपन्न जीव और एकेन्द्रिय जीव-ये सब अभाषक हैं। सेवं भंते ! सेवं भंते !! ॥ दूसरे शतक का छठा उद्देशक समाप्त ॥ शतक २ उद्देशक ७ देवों के प्रकार . ४९ प्रश्न-कइविहा णं भंते ! देवा पण्णत्ता ? ४९ उत्तर-गोयमा ! चरविहा देवा पण्णत्ता, तं जहा-भवणवहवाणमंतर-जोइस-चेमाणिया। ५० प्रश्न-कहि णं भंते ! भवणवासीणं देवाणं ठाणा पण्णता? ५० उत्तर-गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जहाः* भाषा के स्वरूप का विस्तृत विवेचन जानने के लिए जिज्ञासुओं को प्रज्ञापना सूत्र का ग्यारहवा 'भाषा पद' देखना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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