Book Title: Bhagvati Sutra Part 01
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 550
________________ भगवती सूत्र - श. २ उ. १० धर्मास्तिकायादि का स्पर्श विशेष शब्दों के अर्थ - घणोदही- घनोदधि, उवासंतरे - अवकाशान्तर, पडिसेहियव्यानिषेध करना चाहिए । भावार्थ - ७२ प्रश्न - हे भगवन् ! यह रत्नप्रभा पृथ्वी, क्या धर्मास्तिकाय के संख्यात भाग को स्पर्श करती है, या असंख्यात भाग को स्पर्श करती है, या संख्यात भागों को स्पर्श करती हैं, या असंख्यात भागों को स्पर्श करती. हे, या सम्पूर्ण को स्पर्श करती है ? ५३१ ७२ उत्तर - हे गौतम ! यह रत्नप्रभा पृथ्वी, धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग को स्पर्श नहीं करती है, किन्तु असंख्येय भाग को स्पर्श करती है । संख्येय भागों को, असंख्य भागों को और सम्पूर्ण धर्मास्तिकाय को स्पर्श नहीं करती है । ७३ प्रश्न - हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी का घनोदधि, धर्मास्तिकाय के कितने भाग को स्पर्श करता है ? क्या संख्येय भाग को स्पर्श करता है ? इत्यादि प्रश्न ? ७३ उत्तर - हे गौतम ! जिस प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी के लिए कहा है, उसी प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी के धनोदधि के विषय में भी कहना चाहिए और उसी तरह धनवात और तनुवात के विषय में भी कहना चाहिए । ७४ प्रश्न- हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी का अवकाशान्तर क्या धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग को स्पर्श करता है, या असंख्येय भाग को स्पर्श करता है, यावत् सम्पूर्ण धर्मास्तिकाय को स्पर्श करता है ? Jain Education International श ७४ उत्तर - हे गौतम! इस रत्नप्रभा पृथ्वी का अवकाशान्तर, स्ति काय के संख्य भाग को स्पर्श करता है, किन्तु असंख्येय भाग को, संख्येय भागों को, असंख्येय भागों को और सम्पूर्ण धर्मास्तिकाय को स्पर्श नहीं करता है इसी तरह सब अवकाशान्तरों के विषय में कहना चाहिए। जिस तरह रनप्रभा के विषय में कहा, उसी तरह सातवीं पृथ्वी तक कहना चाहिए। बूद्वीपादि द्वीप और लवणसमुद्रादिक समुद्र, सौधर्मकल्प यावत् ईषत्प्राग्भ रापृथ्वी, ये सब धर्मास्तिकाय के असंख्येय भाग को स्पर्श करते हैं। बाकी भागों की पर्शना For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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